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‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ समेत इंदिरा गांधी के इन 3 फैसलों पर भी हुआ था बवाल

राजनीति में अक्सर ऐसी घटनाएं घट जाती है, जो हमेशा के लिए इतिहास बन जाती है। उन घटनाओं को याद करते ही किसी नेता का नाम भी चर्चा का विषय बन जाता है क्योंकि यह घटनाएं उनसे जुड़ी होती है। राजनीति की गलियारों में ऐसी ही घटना है ऑपरेशन ब्लू स्टार जिसके बारे में बात करते ही इंदिरा गांधी का जिक्र भी जरूर होता है। 6 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार किया गया था। भारतीय सेना का यह मिशन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके समर्थकों को वहां से बाहर निकालना था। इस ऑपरेशन को स्वतंत्र भारत में असैनिक संघर्ष के इतिहास की सबसे खूनी लड़ाई माना जाता है। इस ऑपरेशन में सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गए थे।
एक धार्मिक स्थल पर ऐसे खूनी संहार के लिए इंदिरा गांधी की आज भी आलोचना की जाती है। इस ऑपरेशन के अलावा इंदिरा गांधी के ऐसे और भी फैसले रहे हैं, जो हमेशा से विवादों में रहे हैं। आइए, एक नजर डालते हैं-

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal6 Jun, 2019

 

 

आपातकाल- लोकतंत्र का काला दिन
इंदिरा गांधी के संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। उस याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला दिया था। छह सालों तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी। उनको संसद से भी इस्तीफा देने को कहा गया था लेकिन इंदिरा गांधी ने हाई कोर्ट का फैसला मानने से इनकार कर दिया। उसके बाद देश भर में विरोध-प्रदर्शन होने लगे और उनसे इस्तीफा की मांग की जाने लगी। इस सबको देखते हुए इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को आपातकाल लगा दिया और बड़ी संख्या में विरोधियों के गिरफ्तारी का आदेश दिया। भारतीय लोकतंत्र में इस दिन को ‘काला दिन’ कहा जाता है। आपातकाल करीब 19 महीने तक रहा।

 

ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके नतीजे
जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके सैनिक भारत का बंटवारा करवाना चाहते थे। उनलोगों की मांग थी कि पंजाबियों के लिए अलग देश ‘खालिस्तान’ बनाया जाए। भिंडरावाले के साथी गोल्डन टेंपल में छिपे हुए थे। उन आतंकियों को मार गिराने के लिए भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ चलाए थे। इस ऑपरेशन में भिंडरावाले और उसके साथियों को मार गिराया गया। साथ ही कुछ आम नागरिक भी मारे गए थे। बाद में इसी ऑपरेशन ब्लूस्टार का बदला लेने के मकसद से इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी।

 

प्रिवी पर्स की समाप्ति
आजादी के बाद भारत में अपनी रियासतों का विलय करने वाले राजपरिवारों को एक निश्चित रकम देने की शुरुआत की गई थी। इस राशि को राजभत्ता या प्रिवी पर्स कहा जाता था। इंदिरा गांधी ने साल 1971 में संविधान में संशोधन करके राजभत्ते की इस प्रथा को खत्म किया। उन्होंने इसे सरकारी धन की बर्बादी बताया था। इससे रियासतों से सम्बध रखने वाले लोगों ने इसे सरकार का धोखा बताया और इंदिरा के खिलाफ नाराजगी दर्ज कराई।…Next

 

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