सन् 1969 में बतौर राज्यसभा सदस्य देश की सियासत में कदम रखने वाले और देश के राष्ट्रपति बनने वाले प्रणब मुखर्जी का आज जन्मदिन है। प्रणब दा ने विभिन्नख पदों पर रहते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के साथ काम किया। इतने लंबे सियासी सफर के दौरान उनके साथ कई किस्सेक जुड़े। अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उन्होंने काफी फैसले लिए, जिनमें से कुछ फैसले ऐसे हैं, जिनके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
ऐसा रहा राजनीतिज्ञ सफर
प्रणब दा पहली बार 1969 में राज्युसभा सदस्य बने। इसके बाद वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी राज्यीसभा सदस्ये बने। पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में फरवरी 1995 से मई 1996 तक विदेश मंत्री रहे। अक्टूाबर 2006 से मई 2009 तक मनमोहन सिंह की सरकार में दूसरी बार विदेश मंत्री बने। इससे पहले मनमोहन सिंह की ही सरकार में मई 2004 से अक्टूंबर 2006 तक रक्षामंत्रालय की कमान संभाली। इंदिरा गांधी की सरकार में 1982 से 1984 तक और मनमोहन सिंह की सरकार में जनवरी 2009 से जुलाई 2012 तक वित्त मंत्री रहे। 25 जुलाई 2012 को देश के 13वे राष्ट्र9पति बने।
इन 3 फैसलों के लिए हमेशा रखा जाएगा याद
आंतकी अफजक और कसाब की फांसी पर जल्द फैसला
प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल में मुंबई के 26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब और संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरु और 1993 मुंबई बम धमाके के दोषी याकूब मेनन की फांसी की सजा पर फौरन मुहर लगा दी। यानी प्रणब मुखर्जी ने बतौर राष्ट्रपति तीन बड़े आतंकी अजमल, अफजल और याकूब को फांसी दिलाने में अहम रोल निभाया और जल्द से जल्द मामले का निपटारा किया। बता दें कि कसाब को 2012, अफजल गुरु को 2013 और याकूब मेनन को 2015 में फांसी हुई थी।
रेप के दोषियों समेत 37 दया याचिकाएं खारिज कीं
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास पूरे कार्यकाल में करीब 37 क्षमायाचिका आए, जिसमें उन्होंने ज्यादातर में कोर्ट की सजा को बरकरार रखा। रेयरेस्ट ऑफ रेयर अपराध के लिए फांसी की सजा दी जाती है। प्रणब मुखर्जी ने 28 अपराधियों की फांसी को बरकरार रखा। कार्यकाल की समाप्ति के पहले मई महीने में भी प्रणब मुखर्जी ने रेप के दो मामलों में दोषियों को क्षमा देने से मना कर दिया। एक मामला इंदौर का था और दूसरा पुणे का।
हत्या के दोषियों को दी उम्रकैद
पूरे कार्यकाल में प्रणब मुखर्जी ने चार दया याचिका पर फांसी को उम्रकैद में बदला। ये बिहार में 1992 में अगड़ी जाति के 34 लोगों की हत्या के मामले में दोषी थे। राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने 2017 नववर्ष पर कृष्णा मोची, नन्हे लाल मोची, वीर कुंवर पासवान और धर्मेन्द्र सिंह उर्फ धारू सिंह की फांसी की सजा को आजीवन कारावास की सजा में तब्दील कर दिया..Next
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