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पेट्रोल की आंच में जल गया विवेक

Plan to Shut Petrol Pumps at Nightपेट्रोल की कीमत बढ़ी और साथ ही सरकार के माथे पर शिकन भी बढ़ गई. रुपया गिरा, जीडीपी ग्रोथ 4.4 हो गई, महंगाई पहले ही बढ़ी हुई है और उस पर यह पेट्रोल का पारा. देश की गिरती अर्थव्यवस्था पर पहले ही कई सवाल हैं, उस पर यह एक और सवाल उठा देगी. यूपीए सरकार के लिए यह एक चुनौती बन गई है.


हालांकि पेट्रोल की इस कीमत में इजाफा कोई अप्रत्याशित नहीं था. सबको पता था कि एक दिन वह आएगा जब गिरा हुआ रुपया पेट्रोल और पेट्रोलियम पदार्थों का उपयोग करने वालों को नीचे गिराएगा. लेकिन पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोईली का यह प्रस्ताव कि रात के समय पेट्रोल पंपों को बंद कर देना चाहिए किसी के गले से नीचे नहीं उतर रही थी. जब देश की अर्थव्यवस्था चौपट होने के कगार पर है पेट्रोलियम मंत्री रात के समय पेट्रोल पंप बंद रखे जाने का प्रस्ताव रख रहे हैं. प्रस्ताव फिर भी सही है लेकिन इस प्रस्ताव के पीछे कोई तर्क भी तो होना चाहिए.


हालांकि मोईली अपने प्रस्ताव के पीछे की हकीकत कुछ और बताते हैं. उनका कहना है कि यह प्रस्ताव उन्होंने लाया जरूर है लेकिन इस प्रस्ताव के पीछे लोगों की मांग थी. एक बार को अगर मान भी लिया जाए कि मांग लोगों की थी लेकिन प्रस्ताव तो पेट्रोलियम मंत्री ही लेकर आए थे. अगर लाया तो किसी तार्किक आधार पर ही लाया होगा. यूं ही हर किसी की मांगों से सहमत होने की न सरकार की बाध्यता है, न ही उसका स्वभाव. फिर इस तर्क का क्या मतलब रह जाता है.

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हर किसी को पता है कि दिनोंदिन गिरती अर्थव्यवस्था को संभालना यूपीए-2 सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है. अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह की सरकार से किसी को ऐसी उम्मीद नहीं थी. कुछ वौश्विक मंदी, कुछ सरकार की गलत नीतियां इसके लिए हमेशा उत्तरदायी रहीं लेकिन इस उत्तरदायित्व को ईमानदारी से मानने के लिए इतनी हिम्मत भी होनी चाहिए जो किसी भी सरकार में संभवतया आज के घोटालेबाज सरकारों से उम्मीद तो नहीं की जा सकती.


बात अगर सिर्फ पेट्रोल की कीमतों में बढोत्तरी की होती तो सरकार की मजबूरियों को समझा जा सकता था. पर यहां सरकार की पीछा छुड़ाने जैसे बयान और प्रस्ताव हैं. सरकार जानती है कि रुपए के गिरते हालात और देश की अर्थव्यवस्था के इन हालातों के लिए उसकी नीतियां ही दोषी हैं लेकिन उसे सीधे तौर पर स्वीकार करना शायद यूपीए सरकार अपनी नाकामी माने. विशेषज्ञों की टीम के साथ चलने वाली सरकार अगर देश को इस स्थिति में पहुंचा सकती है तो उनकी विशेषज्ञता का फायदा क्या! यूपीए सरकार इस बात को अच्छे से समझती है. हर उठते-गिरते हालात के साथ उसकी बेतुकी बयानबाजी एक प्रकार से इसी का नतीजा बनकर सामने आती है.


हालांकि रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक पेट्रोल पंप बंद रखने का प्रस्ताव खारिज हो चुका है लेकिन यह देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था के हालात में सरकार के अंदरूनी उहापोह को दर्शाती है. यूपीए सरकार खुद इस स्थिति से डरी हुई लग रही है. किसी भी तरह हालात सुधर नहीं पा रहे हैं. 1991 और आज की स्थिति में बहुत भिन्नता आ गई है. तब और आज के हालात में जमीन-आसमान का फर्क है. तब अगर सरकार चाहती तो रात 8 से सुबह के 8 बजे तक पेट्रोल पंप बंद रखती और उससे कोई विवाद नहीं होता. आज भले ही देश मंदी की ओर जा रहा है लेकिन विकसित अर्थव्यवस्थाओं का पीछा करते-करते हमने वे सारे शौक पाल लिए हैं जो सिर्फ शौक न होकर हमारी आज की जरूरत हैं. आज पेट्रोलियम पदार्थों का आयात भले ही विदेशी मुद्रा को खर्च करने के लिए सरकार को बाध्य कर रहा हो लेकिन यह भी एक सत्य है कि इसके बिना भी हमारी अर्थव्यवस्था गड्ड-मड्ड हो जाएगी. आगे कुआं, पीछे खाई की स्थिति में सरकार को हर कदम सोच-समझकर रखना होगा. अगर हालात बिगड़े हैं तो इसे सुधारने का रास्ता भी सोच समझकर ही निकालना होगा. वरना हालात सुधरने की बजाय बिगड़ भी सकते हैं.

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