एक बार फिर से स्वागत करने का समय आ गया है. महामहिम फिर से सब को पानी पिलाने निकल चुके हैं. उनके डर से अब सारे लोग उनकी पूछ में लग गए हैं. भले ही अपनी हालत नहीं सुधारी जाती हो पर पूरे देश का ठेका लेकर मैदान में जरूर निकल आए हैं. देखते हैं इस बार क्या नया तरीका अपनाते हैं राहुल गांधी अपने राजनैतिक जीवन को चमकाने के लिए. पहली बार यू.पी में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं और वहां से मिली नाकामी के बाद अब राष्ट्रीय स्तर पर अपना भाग्य चमकाने निकले हैं. आखिर किन तथ्यों पर राहुल गांधी ने यह फैसला लिया और पार्टी ने कैसे उन पर विश्वास किया यह एक चर्चा का विषय है.
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मैं हूं ना: अब लग रहा है राहुल गांधी पर बड़ी जिम्मेदारियां अपना आसन जमाने वाली है. इस साल कई ऐसे प्रयोग किए जा रहे हैं जिससे राहुल गांधी स्वंय हैरान होंगे!!यू.पी. में इतनी मेहनत के बाद भी इतनी बड़ी हार का सामना करना पड़ा. फिर ना जाने कौन सी विषेशता देख कर राहुल गांधी को चुनाव में पूरे कांग्रेस की बागडोर देने का फैसला किया गया. क्या इस बार राहुल गांधी साबित कर पाएंगे कि वो एक जन नेता की भूमिका अदा कर सकते हैं? राहुल गांधी एक ऐसे नेता हैं जिन्हें आज के दौर में भी पार्टी का पूर्ण समर्थन प्राप्त है. ऐसा आजकल देखने को नहीं मिलता है. भाजपा की कलह से दूर कांग्रेस इस मायनें में भाजपा पर भारी पड़ती है.
जांच हो रही है: अपने काम को बखूबी निभाते हुए राहुल गांधी अपने साथ-साथ कांग्रेस की छवि सुधारने में लगे हुए हैं. संसद से लेकर सड़क तक अपनी-अपनी पार्टी की छवि को सुधारने के लिए तत्पर नज़र आ रहे हैं. भले ही राहुल गांधी अपने आप को साबित करने के लिए कहां-कहां नहीं गए पर उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा. आज सांसदों की जांच इस प्रकार हो रही है जैसे उनके ऊपर ही देश की सारी जिम्मेदारियां हैं. हालात जुदा है, तस्वीर बदल रही है दुरस्थ गांवों में भी राजनैतिक संस्कृति जन्म ले रही है. पंचायत राज ने इसमें उत्प्रेरक का काम किया है. वादों पर सहज ही विश्वास करने की प्रथा बन्द हो रही है, परिवार का करिश्मा खंड़ित हो रहा है. ऐसे परिदृष्य में राहुल के लिए अपने आप को सिद्ध कर पाना बेहद चुनौती भरा काम है.
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