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राहुल गांधी: प्रधानमंत्री बनने को तैयार पर…..

एक सपना जिसे कांग्रेस के कार्यकर्ता देख रहे हैं कि राहुल गाँधी(Rahul Gandhi)प्रधानमंत्री पद  के अगले दावेदार हैं पर वो अपनी योग्यता पर कितने खरे उतरे ये सभी ने यू.पी. के चुनाव में देख लिया गया.अखिलेश यादव ने जितना प्रचार किया उतना ही राहुल ने भी किया, पर दोनों में जो अंतर था वो चुनाव के परिणाम ने बता दिया. राहुल गाँधी को मौका न मिला हो ऐसा नहीं है.उन्हें बहुत मौका मिला, पर न जाने क्या उन्हें रोकता है जिसके कारण वो अपने को सिद्ध नहीं कर पाते हैं.


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Rahul Gandhi मौके पर पानी फिरा: राहुल गाँधी की हालत कुछ ऐसी ही है जैसे झारखण्ड के शिक्षा मंत्री की थी. शिक्षामंत्री के  लड़के  ही परीक्षा में फेल हो गए  उनके पास सब कुछ है मात्र शासक की योग्यता को सिद्ध करने के.  अन्ना हजारे के आन्दोलन के वक़्त सोनिया गाँधी अनुपस्थित थीं और ऐसे सुनहरे मौके पर भी राहुल हाथ ही मलते रह गए. और तो और उनको देखा भी नहीं गया इस पूरे मामले में एक बार भी  टिप्पणी करते हुए. अब ये उनका बड़प्पन है या असमर्थता कि वो कैमरे के सामने ज्यादा दिखते ही नहीं हैं. वो तो मात्र दिखते रहे हैं किसी के घर रोटी खाते या खेतों में श्वेत वस्त्र धारण कर घूमते.


वंशवाद कायम रहेगा?:कांग्रेस की सबसे बड़ी खासियत “वंशवाद” रही है. शायद कई दशकों से यह परम्परा ये ढोते आ रहे हैं. उनकी इस परम्परा ने देश का क्या हाल किया है ये भी किसी से छुपा नहीं है. हैरानी इस बात पर हुई  कि जब इसका विघटन करते हुए मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया वह भी एक बार नहीं दूसरी बार भी। पर लगता है अब इस परंपरा का और अपमान नहीं किया जाएगा और इसकी पुष्टि राहुल को मुख्य भूमिका में लाए जाने के संकेतों से हो रही है. अब तो बस देखा ही जा सकता है और क्या क्या होने वाला है इस देश में !


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मोर्चा मैं संभालूँगा:यू.पी. के चुनाव में राहुल गाँधी ने युवाओं से लेकर वृद्धों तक को संबोधित कर दिया. उन्होंने कम से कम 200 से ऊपर कैम्पेन किए.  बेबाक बयानबाजी से युवाओं की धमनियों में हरकत बढ़ाने की कोशिश की.  पर ना जाने क्यों सब धरा का धरा रह गया.  तो किस आधार पर कांग्रेस के कार्यकर्ता उन्हें इतने बड़े ओहदे से नवाजने को तैयार हैं?! यहाँ तक कि अंतिम दौर में  ब्रह्मास्त्र की तरह प्रियंका को रण में उतारा गया पर उससे भी कोई खास फर्क नहीं आया आंकड़ों में. विश्वास दिलाना और विश्वास के अनुरूप होने में बड़ा फर्क है इसे राहुल को जान लेना चाहिए. खैर प्रयत्नशीलता भी कुछ होती है इसीलिए राहुल गाँधी को प्रयत्न करना चाहिए …..पर अभी दिल्ली बहुत दूर है…………..!!!!!


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Tag: Rahul Gandhi ,Indian Politics, Prime Minister ,Priyanka Gandhi, Uttar Pradesh, Election, राहुल गाँधी,यू.पी., मनमोहन सिंह, अखिलेश यादव

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