स्वतंत्र भारतीय राजनीति की शुरुआत से ही यह देखा गया है कि प्रतिस्पर्धा और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ ने कभी राजनीतिक तौर पर दो दलों को एक दूसरे का विश्वासपात्र नहीं बनने दिया. अब इसे भारतीय लोगों के भविष्य के साथ जानबूझकर किया जा रहा खिलवाड़ कह लीजिए या फिर दुर्भाग्य लेकिन राजनीतिक पार्टियां पारस्परिक भरोसे पर यकीन नहीं रखतीं जिसके परिणामस्वरूप एक स्वतंत्र पार्टी का अपनी सरकार बनाकर सत्ता में आना बहुत मुश्किल हो जाता है. विभिन्न छोटे-बड़े घटक दलों को लेकर सरकार का निर्माण किया जाता है जो वक्त बे वक्त काम भी आते हैं और काम बिगाड़ भी देते हैं. क्योंकि स्वार्थ से ओतप्रोत होने के कारण सभी का अंतिम और एकमात्र उद्देश्य अपना फायदा निकालना है और जब उनका यह उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता तो वह गठबंधन से अपने हाथ खींचने जैसी धमकी देने पर उतारू हो जाते हैं और यही वजह है जो सत्ता के साझेदारों को खुश रखने की भरपूर कोशिश की जाने लगती है ताकि उनके भीतर किसी तरह की दुर्भावना विकसित ना हो पाए.
मुद्दे की बात करते हुए हम आपको बताते हैं कि पिछले 18 सालों से यह रिकॉर्ड रहा है कि सत्ताधारी मुख्य दल हमेशा से ही रेल मंत्रालय अपने घटक दल को सौंपता रहा है लेकिन एक लंबे अंतराल के बाद इस बार कांग्रेस अपना रेल बजट संसद के सामने पेश करने जा रही है.
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आज लोकसभा में पवन कुमार बंसल अपना पहला रेल बजट पेश करने जा रहे हैं जिससे उम्मीदें तो बहुत हैं लेकिन उनके द्वारा पेश बजट किस-किस कसौटी पर खरा उतर पाता है यह बात अभी भी संदेह के घेरे में है.
उल्लेखनीय है कि भारतीय रेलवे आज भी राजस्व की समस्या से जूझ रही है इसीलिए सूत्रों का कहना है कि पवन कुमार बंसल आला कमान की सलाह पर रेल किराये में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और योजना आयोग के वरिष्ठ सदस्यों की कई घंटे लंबी चली मुलाकात के बाद कुछ हद तक यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि शायद इस बार रेल किराये में बढ़ोत्तरी को लेकर सरकार गंभीर है लेकिन कांग्रेस खुद इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं दिखाई दे रही हैं कि आगामी चुनावों के मद्देनजर इस बार रेल किराये बढ़ाए जाएं या नहीं क्योंकि अंतिम तौर पर ध्येय तो बस सत्ता में बने रहने का ही है.
एक बात और ध्यान रखने योग्य है कि भले ही वर्तमान हालातों को देखते हुए जब खाद्य पदार्थों, ईंधन आदि के दामों में तेज गति से वृद्धि हो रही है तो रेल किराये में बढ़ोत्तरी कुछ हद तक जायज ठहराई जा सकती है लेकिन यह बढ़ोत्तरी पवन कुमार बंसल के लिए कुछ हद तक घातक सिद्ध हो सकती है क्योंकि पिछले रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने भी यह गलती की थी और उन्हें रातोंरात अपने पद से हाथ धोना पड़ा था.
निश्चित तौर पर कांग्रेस सदस्य और केंद्रीय रेल मंत्री पवन कुमार बंसल जब सदन में अपना पहला रेल बजट पेश करेंगे तो उनके सामने आगामी चुनावों में गठबंधन सरकार की जरूरतें, जनता की अपेक्षाएं और वाजिब निर्णय जैसी कुछ रुकावटें सामने होंगी लेकिन अंतत: वह किस चीज को प्राथमिकता देते हैं यह कुछ ही समय में स्पष्ट हो जाएगा.
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