भारतीय खाते में ओलंपिक मेडल बहुत ही कम (केवल दो) आए है. इसके पीछे की वजह कहीं न कहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस तस्वीर में छुपी हुई है. यह तस्वीर साफ कह रही है कि अपने से ऊपर के लोगों को खुश करने के लिए जमीर भी दाव पर लगाना पड़े तो लगाओ. नैतिक-अनैतिक की परवाह किए बगैर किस तरह से चापलूसी और जी हजूरी लोगों के रग-रग में फैल चुकी है इस तस्वीर में वह साफ दिखता है. उसी तरह खिलाड़ियों को भी यदि आगे बढ़ना है तो उन्हें अपने अंदर खेल से ज्यादा चाटुकारिकता भाव लाना होगा.
आइए चाटुकारिका की कुछ और तस्वीरों पर नजर दौड़ाते हैं.
जनता को बाढ़ से बचाने से पहले मेरी रक्षा करो, यही तुम्हारा धर्म है. (कृष्णलाल)
यह तस्वीर भारतीय लोकतंत्र पर जबरदस्त प्रहार कर रही है जो यह कहती है कि “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है.” (जयललिता)
यह तस्वीर कह रही है कि आलाकमान से बढ़कर और कोई नहीं है. अगर आगे बढ़ना है तो आपको शीर्ष नेतृत्व के सामने शीर्ष झुकाना होगा. (सोनिया गांधी)
व्यक्ति पुजा ने इस देश का बेड़ा गर्क कर रखा है. (मायावती)
अपने आप को ऊंचा और दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति तो सालों से चली आ रही है. (ममता बनर्जी)
जिस मन से जूते का फीता बांध रहे हो, उस मन से यदि देश की सेवा करते तो देश तुम पर गर्व करता. (रचपाल सिंह)
यह सत्ता ही बहुत बुरी चीज है जो इस पर बैठा अपने आप को सेवक नहीं राजा ही मान बैठा. (पंकजा मुंडे)
ऐसा लगता है जूते का फीता बांधने के लिए पूरा प्रशासन ही लग गया है. (राजनाथ सिंह)
यदि भारतीय खेल को ऊंचाइयों पर ले जाना है तो सालों से चली आ रही खेल संस्थाओं में चाटुकारिता संस्कृति को खत्म करना होगा. यह खत्म तभी होगा जब सही खिलाड़ी को चुनकर उसपर पैसा खर्च किया जाए और समय दिया जाए…Next
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