प्रेशर कुकर भी बड़ी ही अजीब चीज है. अंदर जितना भी प्रेशर क्यों ना बनता रहे एक वॉल्व के जरिए वह बड़ी ही आसानी से बाहर आ जाता है. वॉल्व के जरिए अंदर की भाप बाहर निकल जाती है और जिस उद्देश्य से वो भाप बनाई गई होती है वह उद्देश्य भी बड़ी ही आसानी के साथ पूरा हो जाता है. हां, थोड़ी बहुत आवाजें आती हैं, शोर मचता है लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है, हमारा उद्देश्य तो बस पेट भरना है ना…..
अरे नहीं, हम यहां आपको प्रेशर कुकर के फायदे या नुकसान के बारे में नहीं बताने जा रहे और ना ही कुकर में बनने वाली किसी रेसिपी से आपको परिचित करवा रहे हैं. हम तो यहां आपको उस छोटी सी वॉल्व, जो अंदर का सारा प्रेशर बाहर निकाल देती है, की खूबी बताने जा रहे हैं और इस वॉल्व का देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस से क्या और कैसा संबंध है ये भी हम आपको बताने की कोशिश करेंगे.
ब्रिटिश शासन काल में सिविल सर्वेंट रहे एलन ऑक्टेवियन ह्यूम, जिन्हें ए.ओ. ह्यूम के नाम से बेहतर जाना जाता है, ने 28 दिसंबर, 1885 को कांग्रेस की स्थापना की थी और स्थापना के साथ ही कांग्रेस के साथ एक ऐसा विवाद जुड़ गया जिससे आज तक वह अपना पल्ला नहीं झाड़ पा रही, बल्कि इसके विपरीत सेफ्टी वॉल्व के जिस सिद्धांत की बात हम यहां कर रहे हैं उसका समय-समय पर इस्तेमाल भी किया है.
उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश शासन काल में जब भारतीय सीधे तौर पर प्रशासन तक अपनी बात नहीं पहुंचा पा रहे थे तब ऐसे समय में इंडियन नेशनल कांग्रेस का गठन किया गया. धीरे-धीरे कांग्रेस जनता और सरकार के मध्यस्थ के तौर पर काम करने लगी. परिणामस्वरूप जनता का जो आक्रोश ब्रिटिश प्रशासन तक सीधे पहुंच सकता था वह कांग्रेस से होकर गुजरने लगा. उद्भव के समय जो आक्रोश तीखा होता था वह सरकार तक पहुंचते-पहुंचते धीमा होने लगा. जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश प्रशासन पर जो दबाव बनाया जा सकता था वह मुमकिन नहीं हो पाता था.
स्वतंत्रता संग्राम के समय कांग्रेस की यह नीति काफी कारगर सिद्ध हुई थी, जिसे आज भी निरंतर प्रयोग में लाया जा रहा है. सेफ्टी वॉल्व की थ्योरी की अगली कड़ी बहुत से लोगों को अखर सकती है लेकिन एक बार गौर करने में बुराई भी क्या है.
हम बात कर रहे हैं देश के दूसरे गांधी अन्ना हजारे की, जिन्होंने इंडिया अगेंस्ट करप्शन जैसी मुहिम चलाकर देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ ला खड़ा किया. महाराष्ट्र के चर्चित चेहरे अन्ना हजारे ने जैसे ही कांग्रेस के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई पूरा देश उनके साथ हो लिया. लेकिन क्या किसी ने गौर किया कि राष्ट्रीय स्तर पर अन्ना हजारे का आगमन तब हुआ जब देश कांग्रेस के खिलाफ गुस्से में था, बढ़ती महंगाई को लेकर जनता में आक्रोश था, कॉमनवेल्थ गेम्स में हुई धांधलेबाजी के सिलसिले में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और सुरेश कलमाड़ी पर आरोप लगाए जा रहे थे, 2 जी घोटाले में पी. चिदंबरम को शिकंजे में घेरा जा रहा था और बिजली, पानी के आसमान छूते दामों से जनता गुस्से में थी. ऐसे समय में अन्ना हजारे ने आकर जनता के गुस्से का रुख अपने आंदोलन के जरिए बदल दिया. जो गुस्सा सीधे सरकार को प्रभावित करता वह आंदोलन के ग्लैमर में दब गया. हैरानी की बात तो ये है कि जिस जनलोकपाल बिल को लेकर अन्ना हजारे ने धरना प्रदर्शन किया, उसको लागू करवाए बिना ही, सरकार की हां में हां मिलाते हुए अन्ना हजारे आउट ऑफ फ्रेम हो गए.
अन्ना की आंधी जैसे ही ठंडी हुई अरविंद केजरीवाल के रूप में एक तूफान आ गया. धरना एक्सपर्ट के नाम से अपनी पहचान बना चुके अरविंद केजरीवाल दिल्ली की जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हैं. इनकी एंट्री की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. जरा गौर कीजिएगा. 10 साल से केन्द्र की सत्ता संभाले हुए यूपीए को इस बात की पूरी आशंका थी कि इस बार जनता उसके साथ नहीं है इसलिए उसने केजरीवाल के रूप में एक ऐसा चेहरा मैदान में उतारा जिसने अपने स्टंट्स के द्वारा जनता को अपनी जादूगरी में कैद कर लिया. दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर 49 दिनों तक शासन भी किया लेकिन अपने दावों की पोल खुलती देख उन्होंने खुद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया. धीरे-धीरे जनता का विश्वास केजरीवाल से उठता गया (प्री प्लांड स्टंट).
एक समय पहले जहां लोग अरविंद को अपना मसीहा मान रहे थे वही अब उनके मुंह पर स्याही उडेल रहे हैं तो कोई थप्पड़ मार रहा है. आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की घटती साख की वजह से फिर से एक बार भाजपा और कांग्रेस की टक्कर तेज हो गई है. मौजूदा आंकड़े साफ बताते हैं कि फिर से एक बार कांग्रेस के चाहने वालों की संख्या बढ़ने लगी है. अब भई बढ़े भी क्यों ना, कभी अन्ना तो कभी केजरीवाल जैसे कांग्रेसियों ने मिलकर अपने कारनामों से यह दर्शा ही दिया है कि देश के पास कांग्रेस के अलावा और कोई विकल्प नहीं है तो जनता बेचारी जाएगी भी तो कहां. इस बार अरविंद केजरीवाल ने सेफ्टी वॉल्व बनकर कांग्रेस के प्रति गुस्से को तोड़-मरोड़ दिया और जनता के हाथ लगा फिर से ठेंगा.
वैसे एक बात तो माननी पड़ेगी कि सेफ्टी वॉल्व थ्योरी के जनक कांग्रेसी थे और आज भी सिर्फ कांग्रेस ही है जो जरूरत पड़ने पर इस थ्योरी को साक्षात रूप देती रहती है. इस थ्योरी के बारे में जानते तो सब हैं लेकिन इसका अनुकरण करने की हिम्मत बस कांग्रेस में ही है.
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