भारत में जहां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी जैसे राष्ट्रीय दल हैं वहीं उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक क्षेत्रीय पार्टियों का जाल बिछा हुआ है. उन्हीं पार्टियों में से एक पार्टी है जो कहने को तो क्षेत्रीय पार्टी है लेकिन जब उसके सामने राजनेता से लेकर फिल्मी और कारोबारी हस्तियां नतमस्तक होती हैं तब वह राष्ट्रीय पार्टी से भी मजबूत दिखाई देती है. जी हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र की राजनीति को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली शिव सेना की.
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अब यहां जहन में एक बात उठती है ऐसा क्या है शिव सेना में जो आरजेडी या डीएमके जैसी क्षेत्रीय पार्टियों में नहीं है. तो बिना झिझके यह साफ तौर पर कहा जा सकता था कि शिव सेना के पास बाल ठाकरे जैसा करिश्माई नेता थे जो अब इस दुनिया में नहीं रहे. लगभग 40 साल तक मुंबई को अपने ही तरीके से चलाने वाले बाल ठाकरे के नाम कई करिश्मे हैं जिसमें सामने केन्द्र की राजनीति करने वाले बड़े-बड़े नेता भी बौने लगने लगते हैं. बाल ठाकरे अकेले नेता थे जो अपने निजी करिश्मे के बल पर आर्थिक राजधानी मानी जाने वाली मुंबई शहर के पहियों को रोकने की ताकत रखते थे.
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उन्होंने एक दमदार नेता के रूप में मुंबई के जनता की चुनौतियों, उनके उतार-चढाव को देखा. क्षेत्रीय पार्टी के सेनापति के रूप में उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता की भलाई ही सोची. बाल ठाकरे ‘मराठी माणूस’ की बात करते रहे थे. उनकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता कि उनके रहते शिव सेना पर कभी आंच नहीं आई. वह अपनी राजनीति से केंद्र की सत्ता को भी हिला देते थे. जब कभी मुंबई की बड़ी हस्तियां किसी बड़ी समस्या में फंसी हुई दिखाई देती तब ऐसी हस्तियां वहा की सरकार की ओर रुख न करके बाल ठाकरे की ओर रुख करती.
बाल ठाकरे को कभी सत्ता का लालच नहीं था. जब तक वह जिंदा थे मुंबई में उनकी अपनी ही सरकार थी. उनको इस बात की कोई फिक्र नहीं था कि दिल्ली में उनकी पार्टी सत्ता में भागीदारी पाती है की नहीं. अब जबकि उनका निधन हो चुका है तो शिव सेना के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसकी बदौलत वह केन्द्र की राजनीति को प्रभावित कर पाएंगे. जिस तरह से बाल ठाकरे युवाओं और बड़ी-बड़ी हस्तियों को आकर्षित करते हैं उस तरह से न तो उद्धव ठाकरे आकर्षित कर पाते हैं और न ही शिव सेना का कोई नेता.
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