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[Shabana Azmi] समाज सेवा के प्रति समर्पित – शबाना आजमी

shabana azmiशबाना आजमी का जीवन परिचय

एक सशक्त अदाकारा और राज्यसभा की सदस्या शबाना आजमी का जन्म 18 सितंबर, 1950 को हैदराबाद, आंध्र प्रदेश में हुआ था. इनके पिता कैफी आजमी एक उत्कृष्ट भारतीय कवि और मां शौकत आजमी बेहतरीन स्टेज अदाकारा थीं. शबाना आजमी के माता-पिता कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के सक्रिय कार्यकर्ता थे. इनका पारिवारिक माहौल पूरी तरह बौद्धिक और राजनैतिक था. शबाना आजमी के अभिभावक उन्हें हमेशा अपने भीतर बौद्धिक सोच और मानव मूल्यों को विकसित करने की शिक्षा देते रहे. शबाना आजमी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के क्वीन मैरी गर्ल्स स्कूल से ग्रहण की. इसके बाद उन्होंने मनोविज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के लिए मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज में दाखिला लिया. स्नातक की परीक्षा पूरी करने के साथ ही शबाना आजमी ने अभिनय के क्षेत्र में कॅरियर बनाने के उद्देश्य से फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में दाखिला लिया. वर्ष 1972 में इस संस्थान के श्रेष्ठ प्रत्याशियों की सूची में शबाना आजमी का नाम भी शुमार था. वर्ष 1984 में शबाना आजमी का विवाह मशहूर गीतकार और लेखक जावेद अख्तर से संपन्न हुआ. शबाना आजमी के भाई बाबा आजमी फिल्म सिनेमेटोग्राफर हैं.


शबाना आजमी का फिल्मी कॅरियर

शबाना आजमी ने 1973 में अपने फिल्मी कॅरियर की शुरूआत की. उनकी पहली फिल्म थी श्याम बेनेगल की “अंकुर”. “अंकुर” जैसी आर्ट फिल्म की सफलता ने शबाना आजमी को बॉलिवुड में जगह दिलाने में अहम भूमिका निभाई. अपनी पहली ही फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हुआ. इसके बाद 1983 से 1985 तक लगातार तीन सालों तक उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया. अर्थ, खंडहर और पार जैसी फिल्मों के लिए उनके अभिनय को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया जो एक बेहतरीन अदाकारा के लिए सम्मान की बात है. प्रयोगात्मक सिनेमा के भरण-पोषण में उनका योगदान उल्लेखनीय है. फायर जैसी विवादास्पद फिल्म में शबाना ने बेधड़क होकर अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रमाण दिया वहीं बाल फिल्म मकड़ी में वे चुड़ैल की भूमिका निभाती हुई नजर आईं. यदि मासूम में मातृत्व की कोमल भावनाओं को जीवंत किया तो वहीं गॉड मदर में प्रभावशाली महिला डॉन की भूमिका भी निभायी.


समाज सेवा के क्षेत्र में शबाना आजमी

शबाना आजमी एक लंबे समय से एड्स से जूझ रहे बच्चों के लिए कार्य कर रही हैं. शुरूआत में उनके सामाजिक कार्यों की भरपूर आलोचना हुई. शबाना आजमी के आलोचकों का कहना था कि वह अपने कॅरियर को गति देने और मीडिया में छाए रहने के लिए यह सब कर रही हैं. उन्होंने अपने सिलेब्रिटी स्टेटस को सामाजिक हितों के लिए उपयोग कर अपनी आलोचनाओं का करारा जवाब दिया. एड्स ग्रस्त बच्चों के साथ होते सामाजिक भेदभाव के खिलाफ चलने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में शबाना आजमी ने अपनी भागादारी निभाई. वर्ष 1989 में अग्निवेश और असगर अली इंजीनियर के साथ मिलकर शबाना आजमी ने सांप्रदायिक सद्भावना के प्रसार हेतु दिल्ली से मेरठ तक की पैदल यात्रा की. उनकी यह यात्रा चार दिन लंबी रही. झुग्गियों में रहने वाले लोगों और लातूर में आए भयंकर भूकंप पीड़ितों के लिए काम कर रहे सामजिक गुटों के साथ मिलकर शबाना आजमी ने भी कई महत्वपूर्ण कार्य किए. 1993 में हुए मुंबई दंगों के बाद शबाना आजमी ने एक प्रभावकारी आलोचक के रूप में धार्मिक उग्रवाद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की.


11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमले के बाद जामा मस्जिद के इमाम बुखारी ने भारत के सभी मुसलमानों को एकत्र हो अफगानिस्तान जाकर जेहाद में भाग लेने का आह्वान किया, तब शबाना आजमी ने बुखारी के इस बयान का कड़ा विरोध किया. शबाना आजमी ने इमाम बुखारी के विषय में कहा कि सबसे पहले उन्हें ही अफगानिस्तान चले जाना चाहिए ताकि भारत के लोगों को थोड़ी राहत मिल सके. एड्स पीड़ित बच्चों के साथ हो रहे सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ शबाना आजमी ने एक कार्यक्रम की शुरूआत की. भारत सरकार द्वारा संचालित एक विज्ञापन में शबाना आजमी को एड्स पीड़ित बच्चों के साथ दिखाया गया है, जिसमें उनका कहना है कि ऐसे बच्चों को आपके समर्थन और प्यार की जरूरत है ना कि भेदभाव और बहिष्कार की. यह विज्ञापन जल्द ही लोकप्रिय और कुछ हद तक अपने उद्देश्य में सफल भी हुआ.


शबाना आजमी ने टीच एड्स नामक एक एनिमेटेड विज्ञापन में भी अपनी आवाज दी. उन्होंने इसके लिए कोई धन राशि नहीं ली.


1989 में शबाना आजमी प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय एकता समिति और भारतीय राष्ट्रीय एड्स समिति की भी सदस्या रह चुकी हैं. 1997 में शबाना आजमी राज्यसभा सदस्या नियुक्त हुईं. उनका यह कार्यकाल 2003 तक चला. 1998 में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने शबाना आजमी को भारत का गुडविल अम्बेसडर नियुक्त किया.


शबाना आजमी को दिए गए सम्मान

मुंबई की झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोगों के लिए कार्य करने के लिए शबाना आजमी को गांधी इंटरनेशल अवार्ड फॉर पीस प्रदान किया गया. वर्ष 1992-1994 तक वह चिल्ड्रन्स फिल्म सोसाइटी की सभापति भी रह चुकी हैं.


शबाना आजमी को पांच बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है जो एक रिकॉर्ड है. उन्हें पहली बार 1975 में फिल्म अंकुर, फिर 1983 में अर्थ, 1984 में खंडहर, 1985 में पार और 1999 में फिल्म “गॉडमदर” के लिए यह सम्मान दिया गया था.


शबाना आजमी को चार बार फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया है. उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया है. 1978 में स्वामी, 1983 में अर्थ, 1985 में भावना और 1999 में फिल्म “गॉडमदर” के लिए यह पुरस्कार दिया गया था. साल 1988 में शबाना आजमी को पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा शबाना आजमी को जोधपुर विश्वविद्यालय और लीड्स विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि दी गई.


सामाजिक कार्यों के क्षेत्र में शबाना आजमी ने अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित की है. विशेषकर एड्स जैसी बीमारी और पीड़ितों के साथ होते भेदभाव के विरुद्ध शबाना आजमी हमेशा चोट करती आई हैं.


फिल्मी जगत में भी शबाना आजमी समानांतर फिल्मों में एक बेहद प्रभावकारी भूमिका के लिए जानी जाती हैं. फायर, अर्थ और वाटर जैसी फिल्मों में उन्होंने विवादास्पद भूमिका निभाई थी. उनकी अदाकारी उच्च कोटि की थी लेकिन फिल्में विवादों से बच नहीं पाईं. वाटर फिल्म में शबाना आजमी ने एक विधवा की भूमिका निभाने के लिए अपने बाल उतरवा दिए थे. उनके इस कदम पर मुसलिम समुदाय के लोगों ने खूब आपत्ति उठाई थी.


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