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Sonia Gandhi – कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी

sonia gandhiसोनिया गांधी का जीवन परिचय

भारत की चंद ताकतवर महिलाओं की सूची में शुमार सोनिया गांधी का जन्म 9 दिसंबर, 1946 को इटली के छोटे से गांव लुसियाना में हुआ था. इनका वास्तविक नाम एड्विग ऐंटोनिया एल्बिना माइनो है. सोनिया गांधी के पिता स्टेफिनो भवन निर्माण ठेकेदार और पूर्व फासिस्ट सिपाही थे. सोनिया गांधी का परिवार आज भी इटली के ओर्बसानो के निकट रहता है. एक साधारण से परिवार से संबंध रखने वाली सोनिया गांधी के जीवन में सुनहरा पड़ाव तब आया जब वर्ष 1964 में वह अंग्रेजी की पढ़ाई करने के लिए कैंब्रिज गई थीं, जहां उनकी मुलाकात कांग्रेस उत्तराधिकारी राजीव गांधी से हुई. राजीव गांधी उस समय ट्रिनिटी कॉलेज में अध्ययन कर रहे थे और एल्बिना माइनो अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए एक होटल में कार्य करती थीं. सन 1968 में एल्बिना माइनो और राजीव गांधी ने विवाह कर लिया. भारत आने और इन्दिरा गांधी की बहू बनने के बाद एल्बिना माइनो का नाम बदलकर सोनिया गांधी रखा गया.


सोनिया गांधी का व्यक्तित्व

इटली के एक बेहद मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध होने के बावजूद आज सोनिया गांधी भारत की ताकतवर महिलाओं की फेहरिस्त में उत्कृष्ट स्थान रखती हैं. इसी से स्पष्ट हो जाता है कि सोनिया गांधी बेहद प्रभावी और दृड़ व्यक्तित्व वाली महिला हैं. पति राजीव गांधी के निधन के बाद सोनिया गांधी ने अकेले अपने बल पर राजनीति में एक अहम मुकाम पाया है. सोनिया गांधी उस समय बिल्कुल अकेली पड़ गई थीं, जब उनके परिवार में उन्हें मार्गदर्शन देने वाला कोई नहीं था. इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या ने उन्हें अकेला कर दिया था. ऐसे हालातों में भी उन्होंने अपना हौसला नहीं खोया. परिवार और अपने बच्चों की पूरी देखभाल की. यह लगातार 10 वर्षों से कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हैं, जो अपने आप में एक बहुत बड़ा रिकॉर्ड है.


सोनिया गांधी का राजनैतिक सफर

नेहरू परिवार से संबंध होने के बावजूद सोनिया और राजीव गांधी ने खुद को पूर्णत: राजनीति से अलग रखा हुआ था. जहां राजीव गांधी बतौर एयरलाइन पायलट काम कर रहे थे, वहीं सोनिया गांधी परिवार और बच्चों की देखभाल कर अपना समय व्यतीत करती थीं. वर्ष 1980 में संजय गांधी के निधन के पश्चात जब राजीव गांधी, इन्दिरा गांधी को सहायता देने के लिए राजनीति में आ गए थे उस समय भी सोनिया गांधी राजनीति से दूर रहीं. लेकिन जब इन्दिरा गांधी की हत्या हुई तब राजीव गांधी के प्रचार और उनकी सहायता करने के लिए सोनिया गांधी को राजनीति में आना ही पड़ा. राजीव गांधी को विजयी बनाने के लिए सोनिया गांधी ने मेनका गांधी के विरुद्ध उनके चुनावी प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाई. 1991 में राजीव गांधी की हत्या के पश्चात सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद स्वीकरने से इंकार कर दिया. वह काफी समय तक राजनीति से दूर रहीं. उस समय पी.वी. नरसिंह राव के कमजोर नेतृत्व में कांग्रेस को आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. इसके अलावा सीताराम केसरी को अध्यक्ष बनाए जाने पर भी कांग्रेस सदस्यों के बीच मनमुटाव पैदा हो गया. इन्हीं कुछ वजहों से कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गांधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव की. उनके दबाव में सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में वो कांग्रेस की अध्यक्षा चुनी गयीं. सोनिया गांधी बेल्लारी, कर्नाटक, अमेठी से चुनाव लड़ीं और विजयी भी हुईं. सुषमा स्वराज जैसी बीजेपी की अनुभवी नेता को भी उन्होंने दो बार हराया. सन 1999 में तेरहवीं लोकसभा काल में नेता विपक्ष के रूप में चुनी गईं. 2003 में नेता विपक्ष की मजबूत भूमिका का निर्वाह करते हुए सोनिया गांधी संसद में वाजपयी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव भी लाईं. वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिये कांग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार का समर्थन करने का फैसला किया जिससे कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों का स्पष्ट बहुमत पूरा हुआ. 16 मई, 2004 को सोनिया गांधी 16-दलीय गठबंधन की नेता चुनी गईं जो वामपंथी दलों के सहयोग से सरकार बनाता और जिसकी प्रधानमंत्री सोनिया गांधी बनतीं. सबको अपेक्षा थी कि सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी और सबने उनका समर्थन किया. परंतु एनडीए के नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर आक्षेप लगाए. ऐसा माना जाता है कि तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे अबुल कलाम ने भी उन्हें प्रधानमंत्री बनाने से मना किया था. ऐसे में सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को अपना उम्मीदवार बताया और पार्टी को उनका समर्थन करने का अनुरोध किया. कांग्रेस दल ने इसका खूब विरोध किया और उनसे इस फ़ैसले को बदलने का अनुरोध किया पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य कभी नहीं था. सब नेताओं ने मनमोहन सिंह का समर्थन किया और वे प्रधानमंत्री बने और सोनिया को दल का तथा यूपीए गठबंधन का अध्यक्ष चुना गया.


सोनिया गांधी से जुड़े विवाद

राजनैतिक परिवार में विवाह होने के बाद भी सोनिया गांधी बहुत लंबे समय तक राजनीति से दूर रहीं लेकिन फिर भी वह आक्षेपों से बच नहीं पाईं. राजीव गांधी पर जब बोफोर्स तोपों की खरीद-फरोख्त में घोटाले का आरोप लगा तो उसमें क्वात्रोची नामक इटली के एक व्यवसायी की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई. वह क्वात्रोची कोई और नहीं सोनिया गांधी का बहुत अच्छा मित्र था. भारतीय मूल का ना होना हमेशा ही विरोधी पार्टियों को खटकता रहा है. यहां तक कि जब गठबंधन वाली सरकार के विजय होने के बाद उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने की बात उठी तो सुषमा स्वराज और उमा भारती ने यह घोषणा कर दी थी कि अगर वह प्रधानमंत्री बनाई गईं तो वह दोनों अपना सिर मुंडवा लेंगी और आजीवन जमीन पर ही सोएंगी. हाल ही में उनके विदेश दौरों पर खर्च की अत्याधिक राशि और इन दौरों की वजह भी संदेह का विषय बनी हुई है.


सन 2004 में सोनिया गांधी को फोर्ब्स पत्रिका ने विश्व की तीसरी सबसे ताकतवर महिला के पायदान पर रखा था. वहीं सन 2010 में सोनिया गांधी को इसी पत्रिका ने नौंवा स्थान दिया था. इसी वर्ष एक ब्रिटिश पत्रिका द स्टेट्समैन ने भी सबसे ताकतवर लोगों की अपनी सूची में सोनिया गांधी को 29वां स्थान दिया था. टाइम पत्रिका द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण में भी विश्व के सबसे प्रभावी लोगों में सोनिया गांधी का नाम शुमार है. सोनिया गांधी ने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हुए दिवंगत पति राजीव गांधी की याद में दो पुस्तकें भी लिखी हैं. इसके अलावा उन्होंने जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गांधी के बीच जिन पत्रों का आदान प्रदान हुआ उनमें से कुछ का संपादन भी किया है.


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