पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा द्वारा मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाने के बाद सियासी गलियारों में इसे लेकर हलचल तेज है। बुधवार को यशवंत सिन्हा ने एक अंग्रेजी अखबार में लिखे लेख में अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार पर केंद्र सरकार को घेरा। इसके बाद उनके ही बेटे व केंद्र में मंत्री जयंत सिंन्हा ने अपने लेख में केंद्र का बचाव करते हुए लिखा कि हम एक नई मजबूत अर्थव्यवस्था बना रहे हैं। मगर ऐसा पहली बार नहीं है, जब मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर भाजपा के ही नेता ने सवालिया निशान लगाए हों। इससे पहले भी भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने केंद्र की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाए हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में।
यशवंत सिन्हा ने अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार पर केंद्र को घेरा
बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने एक अंग्रेजी अखबार में लिखे अपने लेख में अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार पर केंद्र सरकार को घेरा था। इसके लिए केंद्र सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने कहा था कि बीजेपी में कई लोग यह जानते हैं कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हो रही है, लेकिन डर के मारे बोल नहीं पा रहे हैं। ‘I need to speak up now’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में सख्त लहजे में अर्थव्यवस्था में गिरावट के लिए नोटबंदी और जीएसटी के निर्णयों को जिम्मेदार ठहराया था। जीडीपी के आंकड़ों पर भी सवाल उठाए थे। पूर्व वित्त मंत्री ने आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई के छापों को लोगों के दिमाग में भय उत्पन्न करने वाला गेम बताया। साथ ही यह भी जोड़ा था कि जब बीजेपी विपक्ष में थी, तो वह इस तरह की कार्रवाइयों का विरोध करती थी, लेकिन अब ऐसा नियमित रूप से हो रहा है। लेख के अंत में वित्त मंत्री अरुण जेटली पर तंज कसते हुए लिखा था कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि उन्होंने बेहद करीब से गरीबी देखी है। ऐसा लगता है कि उनके वित्त मंत्री भी ओवरटाइम काम करके यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सभी भारतीयों को भी बेहद करीब से इस तरह का अनुभव होना चाहिए।
अरुण शौरी ने आर्थिक नीतियों को बताया था दिशाहीन
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी ने 2015 में नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि मौजूदा सरकार की आर्थिक नीति दिशाहीन है। पत्रकार से नेता बने शौरी ने कहा था कि मोदी का एक साल का शासन आंशिक रूप से अच्छा है, प्रधानमंत्री के रूप में विदेश नीति में उनकी ओर से किया गया बदलाव अच्छा है, लेकिन अर्थव्यवस्था में किये गये वादे पूरे नहीं हुए। इन दिनों भाजपा में सक्रिय भूमिका नहीं निभा रहे शौरी ने कहा था कि वादों के बावजूद पूर्व प्रभावी करों और उत्पादन के लिए प्रोत्साहनों पर विदेशी निवेशकों की आशंकाओं पर जमीन पर काम नहीं दिखाई दिया है। निवेशकों को स्थिरता और पूर्वानुमान की क्षमता चाहिए। उन्होंने कर संबंधी मुद्दों को संभालने के तरीके की भी आलोचना थी कि इसकी वजह से विदेशी निवेशक दूरी बना रहे हैं। शौरी ने नोटबंदी को लेकर भी मोदी सरकार की आलोचना की थी।
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी उठाए हैं सवाल
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने 2016 में रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन पर देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था। जून 2016 में उन्होंने केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन को भी नहीं छोड़ा था और उन पर गंभीर आरोप लगाए थे। इसके अलावा वे समय-समय पर अपने ट्वीट और लेख के माध्यम से सरकार की आर्थिक नीतियों का मूल्यांकन करते रहते हैं। वे अपने ट्वीट से भी कभी-कभी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर तंज कसते रहते हैं।
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