दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार 14 फरवरी को अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे कर रही है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थक जहां इस तीन साल के कार्यकाल की सराहना करने में जुटे हैं, वहीं विपक्षी पार्टियां व विरोधी केजरीवाल सरकार की आलोचना कर रहे हैं। केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने का सफर दूसरों से अलग और नया रहा है। यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे। गैरराजनीतिक पृष्ठभूमि के केजरीवाल आंदोलन के रास्ते दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए। केजरीवाल की इस सफलता की यात्रा एक फोन कॉल से शुरू हुई थी। आइये आपको बताते हैं क्या है वो घटना।
2011 में जनलोकपाल के लिए मीटिंग
करीब सात साल पहले साल 2011 में दिल्ली के भाई वीर सिंह मार्ग पर स्थित चेतनालय भवन में दोपहर के वक्त एक मीटिंग चल रही थी। अरविंद केजरीवाल अपने एनजीओ परिवर्तन और उसके सहयोगी एनजीओ से जुड़े देश भर से आए करीब 30-40 वॉलंटियर्स के साथ मीटिंग कर रहे थे। मीटिंग का एजेंडा था कि कैसे सरकारी प्रस्तावित लोकपाल की तुलना में ज्यादा प्रभावशाली जनलोकपाल के बारे में देश के लोगों को अवगत कराया जाए। मीटिंग में कई सुझाव आ रहे थे, जिन्हें संशोधनों के साथ नोट किया जा रहा था। कोशिश एक ऐसी रणनीति बनाने की थी, जिसके चलते लोगों को जनलोकपाल के बारे में जागरूक करके सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
एक फोन और बदल गई सारी रणनीति
मीटिंग के दौरान अचानक केजरीवाल का फोन घनघनाता है और वे बात करने के लिए मीटिंग से बाहर चले जाते हैं। करीब 10 मिनट बाद जब वे मीटिंग में वापस लौटते हैं, तो ऐलान करते हैं कि महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे लोकपाल के मसले पर उनके साथ मिलकर दिल्ली में अनशन करने को तैयार हो गए हैं। यानी अब तक बनी सारी रणनीतियां खत्म। अब एक ही रणनीति बनेगी और वह अन्ना के अनशन को कामयाब बनाने की रणनीति होगी। चेतनालय में हुई उस मीटिंग के बीच में केजरीवाल को आए उस फोन ने एक ऐसे आंदोलन की नींव रख दी, जिसने आगे चलकर इस देश की राजनीति के सालों पुराने तौर तरीकों को बदलकर रख दिया।
रुकना नहीं चाहते थे केजरीवाल
राइट टू इंन्फॉरमेशन यानी सूचना के अधिकार पर बेहतरीन काम करके के लिए केजरीवाल रमन मैग्सेसे पुरस्कार हासिल करके जाना पहचाना नाम बन चुके थे, लेकिन वे वहीं रुकना नहीं चाहते थे। केजरीवाल ने अपने एनजीओ के जरिये दिल्ली के करावल नगर जैसे इलाके में स्वराज अभियान भी चलाया, लेकिन बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी। इसी दौरान केजरीवाल के हाथ यूपीए सरकार के प्रस्तावित लोकपाल विधेयक की एक ड्राफ्ट कॉपी लगी। इसमें उन्हें कई लूप-होल्स नजर आए। इसकी तुलना में केजरीवाल ने मशहूर वकील शांति भूषण भूषण, प्रशांत भूषण और कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े के सहयोग से एक सशक्त जनलोकपाल का ड्राफ्ट तैयार कराया और इसी मांग लिए अन्ना हजारे को दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन के लिए बैठने को राजी किया गया।
अन्ना अनशन ने सरकार को झुकने पर किया मजबूर
अप्रैल 2011 में जंतर-मंतर पर हुए अन्ना के अनशन ने सरकार को झुकने पर मजबूर किया। इतने बड़े आंदोलन की कामयाबी को केजरीवाल इस मुकाम पर छोड़ना नहीं चाहते थे। राजनीति में एंट्री के केजरीवाल के फैसले ने अन्ना को इस आंदोलन से अलग कर दिया। नवंबर 2012 में टीम केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के नाम से देश की राजनीति में दस्तक दे दी। देश में आ चुकी इंटरनेट क्रांति का सबसे समझदारी भरा और कामयाब प्रयोग सबसे पहले आम आदमी पार्टी ने किया। पहली बार देश की किसी पार्टी में प्रोफेशनल्स को बतौर वॉलंटियर्स तनख्वाह पर रखा गया।
साल भर बाद ही चखा कामयाबी का स्वाद
साल भर बाद ही आम आदमी पार्टी को कामयाबी का स्वाद भी चखने को मिला। सन् 2013 में दिल्ली के विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतकर जब कांग्रेस के सहयोग से उन्होंने पहली बार दिल्ली की सरकार बनाई, तो रामलीला मैदान में हुए उनके शपथ ग्रहण समारोह पर पूरी दुनिया की नजर थी। 48 दिन की सरकार में केजरीवाल ने बिजली और पानी के बिलों को लेकर अपने वादे को पूरा करके दिल्ली की जनता के भरोसे को एक नया आधार दिया।
आंदोलन से निकली पार्टी सत्ता पर काबिज
2015 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का जादू दिल्ली में एक बार फिर चल गया। दिल्ली की जनता से केजरीवाल को माफी के साथ-साथ 70 में से 67 सीटों का इनाम भी मिला। इस प्रचंड बहुमत के बाद बनी आप सरकार को तीन साल पूरे हो गए हैं। आंदोलन से निकली पार्टी आज दिल्ली की सत्ता में हैं और केजरीवाल उसके मुखिया हैं। हालांकि, इन तीन सालों में कितने वादे पूरे हुए और कितने अधूरे हैं, इसका फैसला तो दिल्ली की जनता चुनाव के वक्त ही करेगी…Next
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