यूपीए 2 ने चौथी वर्षगांठ मनाकर अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम चरण में कदम रख दिया है, लेकिन यह सफर उसके लिए कभी भी आसान नहीं रहा क्योंकि शुरुआती समय से ही उसके दामन पर कुछ ऐसे दाग लगने लगे थे जिनसे वह अभी तक पार नहीं पा सकी है. भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी के साथ-साथ उस पर देश के विकास से भी जुड़े कुछ ऐसे आरोप लगे हैं जिसका बोझ अपने कंधों पर उठाकर उसके लिए एक कदम चलना तक मुश्किल था. यह हालात और भी कठिन इसलिए हुए क्योंकि बीच रास्ते में ही सरकार के दो विश्वसनीय साथियों, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके ने साथ छोड़ दिया.
उल्लेखनीय है कि खुदरा व्यापार में एफडीआई के प्रवेश को मंजूरी दिए जाने जैसे सरकार के फैसले पर ममता बनर्जी ने यूपीए गठबंधन से नाता तोड़ लिया तो वहीं श्रीलंका में तमिलों के मुद्दे को लेकर डीएमके भी खफा हो गई. ऐसी परिस्थितियों में सरकार की सबसे बड़ी खामी यह रही कि उन्होंने अपने पुराने सहयोगियों को मनाने की बजाय बाहर से समर्थन दे रही पार्टियों, सपा और बसपा, पर ज्यादा विश्वास दिखाया और हालातों का पूरा फायदा उठाते हुए इन दोनों दलों ने सरकार के साथ हर तरीके से अपनी मनमर्जी की.
अपनी चौथी वर्षगांठ के मौके पर शांत और कम बोलने वाले प्रधानमंत्री मननोहन सिंह ने यूपीए की उपलब्धियां गिनवाईं तो विपक्ष के तीखे तेवर और तेज हो गए.
मनमोहन सिंह का कहना था कि यूपीए के शासनकाल में देश ने बहुत लंबा सफर तय किया है, जिसमें उपलब्धियां और कमियां भी शामिल हैं लेकिन अभी उन्हें मीलों का सफर और तय करना है. इतना ही नहीं अपने भाषण में मनमोहन सिंह इस बात से भी आश्वस्त रहे कि आगामी लोकसभा चुनावों में भी यूपीए ही सत्ता में आएगी.
आर्थिक वृद्धि में आई कमी को स्वीकारते हुए मनमोहन सिंह का कहना था कि उसका कारण वैश्विक स्तर पर आई मंदी है, जिसका हल उनके पास नहीं है. लेकिन देश के आर्थिक हालातों को सुधारने के लिए उन्होंने जो कदम उठाए हैं वह असरदार साबित हो रहे हैं इसीलिए उन्हें असफल कहने वाले लोगों को राजग और यूपीए सरकार के शासन व्यवस्था में अंतर को जरूर महसूस करना चाहिए.
सर्वशिक्षा अभियान, मिड डे मील योजना, मनरेगा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना जैसी योजनाओं को सरकार की उपलब्धियां गिनवाकर और विपक्ष पर निशाना साधते हुए मनमोहन सिंह ने यह भी कहा कि उन्हें जो खाली गिलास पकड़ाया गया था उसे भरने में टाइम तो लगना ही था इसीलिए उनकी कोशिशें जारी हैं और उन्हें इस बात में कोई शक नहीं है कि वह जनता की अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे.
खुद पर आरोप लगने के बाद भला विपक्षी दल कैसे चुप रह सकता था. मनमोहन सिंह के इस कथन के बाद विपक्षी नेता सुषमा स्वराज ने मनमोहन सिंह पर आरोप लगाया कि वह प्रधानमंत्री तो हैं लेकिन ना तो अपनी पार्टी के नेता बन पाए ना ही देश का सही तरीके से नेतृत्व कर पाए हैं.
विपक्ष के अलावा यूपीए 2 को बाहर से समर्थन दे रही सपा भी सरकार की कार्यप्रणाली से कुछ ज्यादा खुश नहीं है. सपा नेता कमाल फारुकी का कहना है कि वह यूपीए 2 से संतुष्ट नहीं हैं और ना ही उसका यह कार्यकाल अतुलनीय साबित हुआ है, जिसकी वजह से हो सकता है आगामी चुनावों में उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़े.
इतना ही नहीं कभी यूपीए का साथ निभाने वाले वामपंथी दल का भी यही कहना है कि यूपीए की एकमात्र उपलब्धि बस यही है कि उसने चार सालों का सफर तय किया है.
बहरहाल यूपीए गठबंधन हमेशा से ही आरोपों के साये से घिरा रहा है. इसमें कोई शक नहीं है कि जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर कांग्रेस हर वो कोशिश करने में सक्षम है जिससे कि वह अपनी सरकार को बचाने में कामयाब रहे. सहयोगियों को लुभाना हो या फिर विपक्षी गठबंधन के साथियों को ही ललचाकर अपने साथ मिलाना हो, राजनीतिक कुरुक्षेत्र में कांग्रेस का कोई सानी नहीं है. इसीलिए वे लोग जो ये सोचते हैं कि यूपीए 2 अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी, बहुत हद तक संभव है कि उन्हें निराशा ही हाथ लगने वाली है.
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