सरकार की मौजूदा नीतियों से आम जनता अब पूरी तरह त्रस्त हो चुकी है. हाल में लिए गए फैसलों ने एक विचित्र प्रकार की चिंता को जन्म दिया है, जो आम जन में आक्रोश पैदा कर रही है. कोयले की आग को बुझाने के लिए डीजल का छिड़काव कहां तक उपयुक्त है, ये मंत्रिमंडल के ठेकेदार ही समझ सकते हैं. आम जनता तो इनको समझने में असमर्थ है. रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने वाले प्रसाधन जैसे कि रसोई गैस, अनाज, इत्यादि के मूल्यों में इतनी बढोत्तरी हुई है कि उनके समीप पहुंचने में भी लोगों को सोचना पड़ रहा है और उसके ऊपर ये सब्सिडी का जाल. लोग अगर इनमें उलझें नहीं तो और क्या करें. इससे भले ही हमारा फायदा न हो “बिचौलियों” का जरूर होगा.
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अभी ब्लैक में एक सिलिंडर कम से कम 1100 रुपए का मिलता है. त्यौहार के दिन नजदीक हैं और इस समय इस घोषणा से क्या असर पड़ेगा देश में ये देखने की तैयारी करनी होगी. जगह-जगह पर नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन देखा जा रहा है. पर फिर भी सरकार की नीतियों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. अब एक और नया फरमान जारी हुआ है रेल में ए.सी. के किरायों में वृद्धि का. अनुमानत: यह 1 अक्टूबर से लागू होगा. आश्चर्य इस बात पर होता है कि जो मंत्रिमंडल अर्थशास्त्रियों से भरा पड़ा है उस सरकार की नीतियां इतनी असफल कैसे हो सकती हैं !! और जिसके मुखिया स्वयं मनमोहन सिंह हैं, जो एक दशक से लगातार देश की अर्थनीति में सक्रिय हैं उन्हीं के कार्यकाल में आर्थिक दुर्दशा का बाहुल्य अपने आप में चौंकाने वाला है.
एक तरफ ये हिदायत दी गई थी कि सभी मंत्रालयों में फिजूलखर्ची को कम करें और कोई भी कार्यक्रम पांच सितारा होटलों में न करें, पर ये मात्र दिखावे के और कुछ नहीं. किसी भी समस्या के उत्तर में मात्र ये कह देना कि “भारत में ही नहीं पूरे विश्व में आर्थिक संकट छाया हुआ है” ही काफी नहीं है. सरकार की यह नीतियां जनता को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित कर रही है. जहां एक तरफ सरकार कहती है कि एक गरीब 16 रुपए में रोज पेट भर सकता है, वहीं दूसरी तरफ यूपीए 2 की सालगिरह पर प्रत्येक प्लेट 7 हजार 721 रुपए की थी. दोनों पक्षों में कितना बड़ा अंतर है इसका अनुमान आप इस घटना से लगा सकते हैं. मनमोहन सिंह ने देश को संबोधित करते हुए कहा था कि “पैसे पेड़ पर नहीं उगते” ये बात शायद इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी कि जिसके लिए प्रेस कॉंफ्रेंस करने की जरुरत पड़े.
यूपीए -2 की नाकारा और अराजक नीतियों ने राजनीतिक विश्वसनीयता का संकट खड़ा कर दिया है. जनता पूरी तरह से सरकार से त्रस्त हो चुकी है और उसके अंदर ये डर व्याप्त हो गया है कि न जाने इनका अगला निशाना कौन बने. महंगाई का एक बड़ा कारण भ्रष्टाचार है और भ्रष्टाचार के नियंताओं को देश के बारे में सोचने की फुर्सत कहां ! ऐसे में जनता को अपनी राह खुद ही तलाशनी होगी……….
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