देश के आठवें प्रधानमंत्री बने विश्वनाथ प्रताप सिंह को पिछड़ी जातियों के उत्थान और विकास के लिए याद किया जाता है। छात्र राजनीति से निकलकर विधानसभा पहुंचने वाले वीपी सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने और फिर देश के सर्वोच्च राजनीतिक पद पर भी पहुंचे। 25 जून को वीपी सिंह का जन्मदिन है, इस मौके पर उनके जीवन के कुछ रोचक हिस्सों पर नजर डालते हैं।
रसूखदार खानदान में जन्म
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में एक संपन्न और प्रभुत्व वाले परिवार में 25 जून 1931 को एक गोरे रंग के बेटे ने जन्म लिया। बालक के पिता जमींदार राजा बहादुर राय गोपाल सिंह ने बेटे का नाम विश्वनाथ प्रताप रखा। जो आगे चलकर वीपी सिंंह के नाम से दुनियाभर में पहचाना गया। वीपी सिंह शुरुआत से ही नेतृत्व क्षमता के धनी रहे और उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की।
छात्र राजनीति में कदम
वीपी सिंह ने शुरुआती पढ़ाई के बाद 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उदय प्रताप कॉलेज में दाखिला ले लिया। यह वह समय था जब देश आजादी की खुशी मना रहा था और खुद को व्यवस्थित करने लगा हुआ था। वीपी सिंह ने छात्र राजनीति में कदम रखा और इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के उपाध्यक्ष भी रहे। कॉलेज के दिनों में ही आंदोलनों में कूद गए।
भूदान आंदोलन से नेता बनकर उभरे
1957 में जब भूदान आंदोलन हुआ तो वीपी सिंह के नेतृत्व में भारी संख्या जुटे युवाओं को देखकर राजनीतिक पंडिंतों ने ऐलान कर दिया कि भविष्य का बड़ा नेता उभर रहा है। इस आंदोलन के दौरान उन्होंने अपनी जमीन दान कर दी। इस दौरान तक वह कांग्रेस में शामिल हो चुके थे। इलाके में पहचान और रसूख होने का वीपी सिंह को राजनीति में खूब फायदा मिला।
विधायक, सांसद से मुख्यमंत्री तक बने
1969—71 में उन्होंने विधानसभा चुना लड़ा और जीतकर विधायक बने। 1971 में लोकसभा चुनाव जीतकर पार्लियामेंट पहुंचे। इस दौरान वह फाइनेंस मिनिस्टर बने। इस वक्त तक उत्तर प्रदेश की राजनीति के वह मुख्य और सबसे ताकतवर नेता बन चुके थे। 1980 में वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वह दो साल से ज्यादा मुख्यमंत्री रहे और फिर केंद्र सरकार में मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली।
प्रधानमंत्री राजीव गांधी से टकराव
31 दिसम्बर 1984 को वीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बने। इस दौरान वीपी सिंह का टकराव प्रधानमंत्री राजीव गांधी से हो गया। टकराव की वजह बोफोर्स मामला। सरकार में रहते हुए वीपी सिंह ने विरोध का बिगुल फूंक दिया। उन्होंने एक अमेरिकी जासूस कंपनी से तहकीकात कराई। इस बीच स्वीडन ने खबर प्रसारित करते हुए बताया कि बोफोर्स तोप खरीद मामले में करोड़ों की दलाली की बात कही। यह मामला संसद में गरमा गया और वीपी सिंह कांग्रेस से अलग हो गए।
भाजपा और अन्य दलों के समर्थन से बने प्रधानमंत्री
1989 के चुनाव में वीपी सिंह ने जनता दल समेत अन्य विपक्षी दलों को एकजुट कर राष्ट्रीय मोर्चा बनाया और जोरदार प्रचार अभियान चलाया जिसका मुख्य मुद्दा बोफोर्स मामला था। चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 197 सीटें मिलीं और बहुमत से दूर हो गई। राष्ट्रीय मोर्चा को 147 सीटें हासिल हुई तो भाजपा और वामदलों ने समर्थन कर वीपी सिंह को नेता चुन लिया और इस तरह वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने।
मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कीं
प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए बनाए गए मंडल आयोग की सिफारिशों को मंजूर करते हुए लागू कर दिया था। वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए सिख दंगों के पीड़ितों को बड़ी राहत दी। वीपी सिंह 11 महीने तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। 1996 के बाद वीपी सिंह ने राजनीति छोड़ दी। 1998 में वह कैंसर से पीड़ित पाए गए। 27 नवंबर 2008 को 77 वर्ष की आयु में वीपी सिंह ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।…NEXT
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