कहते हैं विरोधी का विरोध दोस्त होता है। राजनीति में भी कुछ ऐसे ही किस्से देखने को मिलते रहते हैं जब दो विरोधी अपने विरोधी को हराने के लिए हाथ मिला लेते हैं। भाजपा को हराने के लिए सपा और बसपा इसी कहावत को सच करते हुए नजर आ रही है। हालांकि, गठबंधन पर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी (एसपी) अध्यक्ष अखिलेश यादव शनिवार को लखनऊ में साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जा रहे हैं। तभी पूरा मामला साफ हो पाएगा लेकिन इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों आगामी लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन की घोषणा कर सकते हैं। साथ ही इस दौरान सीटों के बंटवारे को लेकर ऐलान भी संभव है। ऐसी अटकलें हैं कि दोनों दल गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं करेंगे और यूपी में 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में राजनीति गलियारों में सालों पुराने गेस्ट हाउस कांड मामला फिर से चर्चा का विषय बन रहा है, जिसकी वजह से मुलायम और मायावती जानी दुश्मन बन गए थे। जानते हैं क्या थी वो घटना, जिसे गेस्ट हाउस कांड नाम से जाना जाता है।
क्या था गेस्ट हाउस कांड
करीब 25 साल पहले साल 1993 में हुए बीएसपी-एसपी गठबंधन की डोर 1995 में टूट गई। जोड़तोड़ की तमाम कोशिशें भी मुलायम सरकार को बचाते नहीं दिख रखी थी। उस वक्त कार्यकर्ता गुस्से में थे। आखिरकार, 2 जून 1995 को दोपहर 3 बजे लखनऊ के मीराबाई गेस्ट हाउस में जो हुआ उसकी कड़वाहट आज भी बीएसपी-एसपी कार्यकर्ताओं में देखी जा सकती है। इस गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 1 में मायावती अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं। अचानक एसपी कार्यकर्ताओं का एक हुजूम उनके कमरे की तरफ बढ़ा। रिपोर्ट्स के मुताबिक कमरे में तोड़फोड़ हुई, अपशब्द शब्द बोले गए और मायावती के साथ बदसलूकी भी की गई। कहा जाता है कि कमरे में मौजूद विधायक भी मायावती को बचाने के लिए नहीं आए और फरार हो गए।
ऐसे में पुलिस की चुप्पी पर भी सवाल उठाए गए। कहा जाता है कि सपा के कार्यकर्ता इस तरह से उग्र हो गए थे कि मायावती को उनसे बचने के लिए कमरे बंद करके दरवाजे के पास कुर्सियां, मेज तक लगानी पड़ी थी। वहीं कुछ मीडिया रिपोट्स की मानें, तो मायावती के साथ हाथापाई में उनके कपड़े तक फट गए थे।
मायावती ने उस घटना को बताया था हत्या की साजिश
इसके अगले रोज भाजपा के लोग राज्यपाल के पास पहुंच गए थे कि वो सरकार बनाने के लिए बसपा का साथ देंगे और तब कांशीराम ने मायावती को मुख्यमंत्री पद पर बैठाया और यहीं से मायावती ने सीढ़ियां चढ़ना शुरू कीं। मायावती ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उस दिन उनकी हत्या करने की साजिश थी, अगर वो किसी तरह बचकर नहीं निकलती तो अंजाम बुरा हो सकता था। हालांकि, गोरखपुर उपचुनाव के दौरान से ही दोनों पार्टियां 26 साल की पुरानी दुश्मनी भुलाकर साथ आईं थीं। ऐसे में लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां एक साथ नजर आएंगी या नहीं, ये प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद ही साफ हो सकेगा…Next
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