जिस तरह से क्रिकेट अनिश्चिताओं का खेल है, जिस तरह किसी भी मैच में आंकड़ों का सही अंदाजा लगाना मुश्किल है, उसी तरह राजनीति में कब समीकरण बदल जाए, कहा नहीं जा सकता। एक बार फिर जम्मू-कश्मीर की राजनीति चर्चा में है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बुधवार शाम बड़ा फैसला लेते हुए विधानसभा भंग कर दिया, जबकि उनके इस फैसले से ठीक पहले महबूबा मुफ्ती ने सरकार बनाने का दावा पेश किया था।
राज्यपाल मलिक ने राज्य विधानसभा भंग करने के लिए जम्मू-कश्मीर के संविधान आर्टिकल 53 के सेक्शन 2 का सहारा लिया। जानते हैं कि राज्य के संविधान में अनुच्छेद 53 क्या कहता है।
क्या है आर्टिकल 53
आर्टिकल 53 का सेक्शन 1 कहता है कि राज्यपाल को नियमित समय पर विधानसभा सत्र बुलाना चाहिए, लेकिन दो सत्रों के बीच 6 महीने से ज्यादा का अंतराल नहीं होना चाहिए। वहीं सेक्शन 2 कहता है कि या तो राज्यपाल सदन का सत्र चलाते रहें या फिर विधानसभा को भंग कर दें।
इससे पहले राज्य में पीडीपी और बीजेपी का गठबंधन टूटने के बाद से इस साल 20 जून से राज्य में राज्यपाल शासन लागू था।
राज्यपाल शासन क्यों लगाया जाता है
देश के अन्य सभी राज्यों में राजनीतिक दलों के सरकार गठन में नाकाम रहने की स्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है जबकि जम्मू-कश्मीर में मामला थोड़ा अलग है और यहां राष्ट्रपति शासन नहीं बल्कि राज्यपाल शासन लगाया जाता है। जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत राज्य में छह महीने के लिए राज्यपाल शासन लागू किया जाता है, हालांकि इसकी मंजूरी देश के राष्ट्रपति से लेनी होती है।
इस फैसले ने नाराज हैं पूर्व मुख्यमंत्री
महबूबा मुफ्ती ने पीडीपी के 29, एनसी के 15 और कांग्रेस के 12 विधायकों को मिलाकर 56 विधायकों का समर्थन हासिल होने का दावा करते हुए सरकार बनाने की पेशकश की थी। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि यह पूरा घटनाक्रम निराश करने वाला है। इसके अलावा उन्होंने कहा राज्यपाल को पहले सरकार बनाने की संभावनाओं पर गौर करना चाहिए था। आदर्श स्थिति यह होती कि वह सबसे बड़े दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते…Next
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