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करुणानिधि 1994 के बाद से क्यों ओढ़ने लगे पीली शॉल, काले चश्मे से भी जुड़ी है एक घटना

दक्षिण भारत की राजनीति में एक अलग मुकाम बनाने वाले द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के प्रमुख एम। करुणानिधि 94 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए। 50 साल पहले उन्होंने डीएमके की कमान अपने हाथ में ली थी।
एक राजनीतिज्ञ के अलावा करुणानिधि को स्क्रिप्टराइटर और एक बेहतरीन कलाकार के तौर पर जाना जाता है।
ऐसे में इतने लम्बे अरसे में करुणानिधि की छवि में उनकी पीली शॉल और काले चश्मे का अहम भूमिका है, जो उनकी पहचान बन गए। असल में इन दोनों चीजों को पहनने से एक घटना जुड़ी हुई है।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal9 Aug, 2018

 

 

1994 से पहले पीली की बजाय लेते थे सफेद शॉल
1994 में गले की समस्या की वजह से उनके गालों पर सूजन आ गई। डॉक्टरों ने उन्हें इस हिस्से को गर्म रखने के लिए शॉल ओढ़ने की सलाह दी। तब से करुणानिधि पीली शॉल लेने लगे थे। इससे पहले करुणानिधि सफेद शॉल लेते थे। उन्होंने इस पीली शॉल को अपनी पहचान का हिस्सा बना लिया। कई लोगों ने उनकी शॉल को अंधविश्वास से जोड़ना शुरू कर दिया। उनकी आलोचना भी की जाने लगी। करुणानिधि से कई दफा इस बारे में सवाल किए गए।

 

 

काले चश्मे को पहनने की वजह

1953 में उनका एक्सीडेंट हो गया। इस दुर्घटना में उनकी बायीं आंख खराब हो गई। उनकी 12 सर्जरी हुई। इसके बाद सितंबर 1967 में उनका एक और कार एक्सीडेंट हो गया। इसमें दोबारा उनकी आंख पर असर पड़ा। वो आंख में लगातार हो रहे दर्द से परेशान थे। 1971 में उन्हें अमरीका ले जाया गया, जहां उनकी बायीं आंख का ऑपरेशन हुआ। इसके बाद से करुणानिधि काला चश्मा लगाने लगे। ये काला चश्मा उनकी आखों को पूरी तरह से ढक देता था। साल 2000 के बाद से वो ऐसा पारदर्शी चश्मा लगाने लगे जिसमें उनकी आंखें नजर आती थीं। इसी चश्मे के साथ करुणानिधि को विदा किया गया…Next

 

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