इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सर्वे में 76 फीसदी लोगों ने राजनीतिक दल बनाने के पक्ष में राय दी है. सात लाख से अधिक लोगों के बीच एसएमएस, ईमेल और व्यक्तिगत रूप से मिलकर सर्वे किया गया था.
आजकल बड़े जोश के साथ ब्लॉग पर लिखने का चलन है पर लोग ब्लॉग पर लिखी बहुत सी बातें लिख कर भूल जाते हैं या फिर उनकी लिखी बातें बहुत से मुद्दों को गुमराह कर देती हैं. अन्ना हजारे ने कुछ दिन पहले ही अपने ब्लॉग पर लिखा था कि राजनीति से लोगोंका कुछ भला नहीं होने वाला. अब इस बात पर ध्यान दिया जाए तो बड़ा अटपटा लगता है. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सर्वे से यह बात निकल कर सामने आई है कि राजनीतिक दल बनाकर ही राजनीति में से करप्शन को दूर किया जा सकता है. अन्ना जी की हिन्दी में समझाएं तो अब भारत के लोग यह चाहते हैं कि राजनीतिक दल बनाकर ही ताकत और सत्ता अर्जित की जा सकती है और तभी भ्रष्टाचार को दूर किया जा सकता है.
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सवाल यह नहीं है कि राजनीति दल बनाकर भ्रष्टाचार दूर किया जा सकता है या नहीं बल्कि सवाल यह है कि जो सदस्य राजनीतिक पार्टी का हिस्सा बनकर आएंगे वो कितने लायक होंगे. हां जी, बिल्कुल सोचने वाली बात है कि राजनीतिक पार्टी में लाए गए सदस्य कितने काबिल और अच्छी नीयत वाले होंगे. क्या ऐसे चरित्र वाले सदस्यों का चयन किया जा सकेगा जो समाजहित, जनहित के प्रति प्रतिबद्ध हों और व्यक्तिगत स्वार्थों से मुक्त हों………ये अपने आप में ही सबसे ज्यादा टैक्टिकल और चिंतनीय मुद्दा है जिनसे पार पाए बिना अन्ना की सारी रणनीति व्यर्थ सिद्ध हो सकती है.
यदि राजनीतिक हालातों पर गौर करें तो गत छः दशकों में निरंतर पतन की गाथा ही लिखी जाती रही है. 1991 के बाद देश में अवसरों की बाहुल्यता के साथ चारित्रिक अपक्षय की पुष्टता भी देखी गई. वैयक्तिक हितों के लिए सामुदायिक हितों की बलि देना बेहद सामान्य सी बात है. तो ऐसे में जबकि देश विश्वसनीयता के संकट से दो-चार हो रहा है तब क्या निष्ठावान कार्यकर्ताओं की बाढ़ पैदा की जा सकेगी?
सवाल रणनीति का है, सवाल निष्ठा का है और सवाल उपलब्धता का है…….संक्रमण काल की धारा में गतिक स्थिति से ज्यादा स्थैतिक अवस्था बेहतर परिणामदायक होती है किंतु वर्तमान में हालात इससे जुदा ही ज्यादा नजर आते हैं.
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