भारत में फैले मुस्लिम आतंकवाद से तो हम सभी त्रस्त हैं. जिसका पड़ोसी पाकिस्तान जैसा राष्ट्र हो वहां आतंकवाद के पैर पसरना तो जाहिर सी बात है. उल्लेखनीय है कि भारत के विभाजन के तुरंत बाद से ही पाकिस्तान द्वारा भारत पर किसी ना किसी रूप में आक्रमण किया जाता रहा है जिसका मुख्य कारण है उसके द्वारा कश्मीर की मांग. कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है लेकिन मुस्लिम जनसंख्या वाला राज्य होने के कारण पाकिस्तान उसे अपनी सीमा में लाने की कवायद के तहत सारे हथकंडे अपनाता रहा है.
पाकिस्तान द्वारा भारत में भय और दहशत का माहौल बनाए रखना उन्हीं हथकंडों में से एक है. लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि जहां अब तक पाकिस्तान भारतीय राज्यों में आतंकवाद फैला रहा था वहीं पिछले कुछ समय से वह कश्मीरी लोगों को भी जेहाद का हवाला देकर बरगलाने लगा है. परिणामस्वरूप आज हम बाहरी आतंकवाद के साथ-साथ जेहाद के नाम पर देश की सीमा के अंदर पसर रहे आतंकवाद का भी सामना करने के लिए मजबूर हैं.
लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि कश्मीर के निवासी यह बात अच्छी तरह समझते हैं कि वह भारत के ही नागरिक हैं, भारत उनका अपना देश है फिर आखिर वो क्यों किसी के बरगलाने, बहकाने पर वह करने लगते हैं जिसका नकारात्मक परिणाम मासूम और निर्दोष लोगों के साथ-साथ उन्हें और उनके पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है? उनके भीतर व्याप्त असंतोष, आक्रोश के क्या कारण हैं जो उन्हें यह नहीं सोचने देता कि उनके द्वारा किए जा रहे कृत्य कितने मासूम लोगों की जीवनलीला ही समाप्त कर देंगे?
अफजल गुरू, एक पढ़ा-लिखा, पारिवारिक व्यक्ति था जिसने एक दिन अचानक अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए संसद पर हमला करवा दिया. चर्चा है कि उसे जब फांसी दिए जाने का निर्देश आया तो उसके परिवार ने भारतीय सरकार से बस एक ही सवाल पूछा था कि अफजल जैसा महत्वाकांक्षी व्यक्ति जो इंजीनियरिंग के बाद सिविल सेवा की तैयारी कर रहा था, जिसे बरगलाना भी आसान नहीं था, वह क्यों इतना खतरनाक कदम उठाने के लिए तैयार हो गया?
वहीं अब लियाकत शाह का मसला भी सुर्खियां बटोर रहा है. कश्मीर का रहने वाला लियाकत बहुत समय पहले भारत की सीमा छोड़ पाकिस्तान में जा बसा था. आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त लियाकत शाह का भारत आना-जाना लगा रहता था. लेकिन अब वह पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है. लेकिन इस मामले में भी एक पेंच है. गोरखपुर से गिरफ्तार लियाकत खुद यह बात कह चुका है कि वह आत्मसमर्पण की इच्छा से खुद ही पुलिस के पास जा रहा था लेकिन इसी बीच उसे गिरफ्तार कर लिया गया. लियाकत के परिवारवाले भी उसके इस कथन का समर्थन करते हुए कहते हैं कि लियाकत आतंकवादी गतिविधियां छोड़ चुका है और आत्मसमर्पण करना चाह रहा था.
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जम्मू कश्मीर सरकार गृहमंत्रालय को पहले ही यह कह चुकी है कि लियाकत आत्मसमर्पण करने जा रहा था. इस संबंध में कई दस्तावेज भी मुहैया करवाए जा चुके हैं. लेकिन अभी भी लियाकत के मामले में सुनवाई नहीं की गई है. उसके साथ अभी भी गिरफ्तार आतंकी की ही तरह व्यवहार किया जा रहा है. इतना ही नहीं दिल्ली पुलिस का कहना है कि लियाकत की निशानदेही पर उन्होंने जामा मस्जिद के पास एक होटल के कमरे में से बम बनाने का सामान भी अपने कब्जे में लिया है. लेकिन वहां मौजूद लोगों का कहना था कि पुलिस अपने साथ वही सामान लेकर गई है जो वह लेकर आई थी.
कारण साफ है कि क्यों भारत का अभिन्न अंग कश्मीर न जाने क्यों खुद को इतना अलग समझने लगा है कि उसके लिए भारत ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन पड़ा है. हम कश्मीर को अपना अंग समझते तो हैं लेकिन आजादी के नाम पर उन्हें कुछ दिया जाता है तो अत्याधिक डर और भय का माहौल. परिणामस्वरूप उन्हें अगर कुछ अपना लगता है तो वह है पाकिस्तान और वहां के तथाकथित हितैषी लोग जो कश्मीरी लोगों के आक्रोश का फायदा अपने लिए उठाते हैं.
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क्या कभी हमने गौर किया है कि कहीं हमारी ही कुछ राजनैतिक और सामाजिक नीतियां ही तो उन्हें ऐसा सोचने के लिए मजबूर नहीं कर रही हैं?
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