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अब पिंजरे से आजाद होना चाहता है “तोता”

कोलगेट मामले में सीबीआई की जांच में हस्तक्षेप करने के कारण सरकार को सुप्रीम कोर्ट से खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी. सीबीआई प्रमुख और सरकार के बड़े-बड़े नुमाइंदों ने इस तथ्य को कभी स्वीकार नहीं किया कि केन्द्रीय सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में छेड़छाड़ की गई है या रिपोर्ट दायर करने से पहले सरकार के शीर्ष मंत्रियों को उसे दिखाया गया है लेकिन अपने दूसरे हलफनामे में केन्द्रीय जांच एजेंसी ने अदालत को बताया है कि केन्द्रीय कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा बनाए गए कुछ चार्ट रिपोर्ट में से हटवाए थे. इतना ही नहीं कुछ वाक्य भी सीबीआई की जांच के दायरे में बदलवाए गए थे. जबकि सरकार द्वारा यह कहा गया था कि सीबीआई की जांच में उनकी ओर से कोई दखल नहीं दिया गया और ना ही कोई काट-छांट की गई है.


जो सबसे ज्यादा भ्रष्ट है वही जीतेगा !!


सीबीआई द्वारा दायर हलफनामे को पढ़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कठोर शब्दों में यह कहा है कि सरकार के हस्तक्षेप की वजह से सीबीआई ने कोलगेट घोटाले से संबंधित रिपोर्ट को बदला, जिसे अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने रविकांत, जो पहले इस केस की जांच कर रहे थे और जिन्हें जांच के दौरान ही सरकार द्वारा अन्य प्रभार सौंप दिए गए थे, को वापस इस केस की बागडोर सौंपने का आदेश दिया है.


हजारों जवाबों से अच्छी है ख़ामोशी मेरी


सीबीआई को कड़ी फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि जांच एजेंसी का काम सरकारी अधिकारियों से संबंध बनाना या सुधारना नहीं बल्कि निष्पक्ष होकर जांच करना है. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि अगर कोई सरकारी नुमाइंदा कोलगेट मसले पर सीबीआई के किसी अधिकारी से बात करना चाहता है तो उसे पहले अदालत से इस बाबत इजाजत लेनी होगी और कारण भी बताना होगा कि वो क्यों और किस उद्देश्य से उस अधिकारी से मिलना चाहता है.


लूटने का अवसर नहीं मिला इसलिए खिलाफ हैं !!


सीबीआई, जिसका काम निष्पक्ष जांच करना है, के लिए इससे बड़ी शर्मिंदगी वाली बात क्या होगी कि देश की सर्वोच्च अदालत ने उसकी स्वायत्तता पर आघात करते हुए उसे पिंजरे में बंद एक ऐसा तोता तक कह डाला जो सिर्फ अपने मालिक की जुबान बोलता है. पहले तो सुप्रीम कोर्ट के इस कथन को सीबीआई पचा ही नहीं पा रही थी लेकिन अब सीबीआई अध्यक्ष रंजीत सिंह ने अदालत के इस अवलोकन को स्वीकार कर लिया है. जब उनसे पूछा गया कि क्या वह अदालत के इस कथन को सही मानते हैं कि सीबीआई पिंजरे में बंद तोता है, तो इसके जवाब में उनका कहना था कि कोर्ट ने सीबीआई की स्थिति के बारे में जो भी कहा है वह सच है.


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हालांकि हर बार की तरह इस बार भी बड़बोले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और सीबीआई के काम में हस्तक्षेप ना करने जैसे आदेशों को सरकार के लिए बाध्यता मानने से इंकार कर चुके हैं. उनका कहना है कि “न्यायालय ने सिर्फ एक टिप्पणी की है वह आदेश नहीं है और सरकार ने कुछ भी गलत नहीं किया है.”


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दिग्विजय सिंह का कहना है कि अगर यह आदेश होता तो इस पर सरकार द्वारा कोई ना कोई प्रतिक्रिया जरूर की जाती और सीबीआई की जांच में सरकार द्वारा किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया गया.


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बहरहाल यह कहना गलत नहीं है कि सीबीआई जिसे कथित तौर पर स्वायत्त संस्था का दर्जा दिया जाता है उसका सरकार के साथ गठबंधन कोई नई बात नहीं है. अभी तक सिर्फ सुप्रीम कोर्ट या फिर विपक्षी दल ही उसे दूसरे के इशारे पर नाचने वाली संस्था बता रहे थे लेकिन अब जब सीबीआई के अध्यक्ष ने स्वयं यह स्वीकार कर लिया है कि सीबीआई पिंजरे में बंद तोता है जो अपने मालिक की आवाज बोलता है, तो वाकई इसकी कार्यप्रणाली में सुधार की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है.


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