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इसे हमारी नाकामी कहें या पाक की हिमाकत

पाकिस्तान, एक ऐसा देश है जो कहने को तो भारत का ही एक टूटा हुआ हिस्सा है लेकिन भारत की सरहद से खुद को अलग करने के बाद इसने जितनी कोशिश अपने पैतृक स्थान, अपने पूर्वजों की धरती के साथ-साथ पूरी दुनिया में आतंक फैलाने के लिए की है अगर उतनी कोशिश अपने अंदरूनी विकास के लिए की होती तो जिन नकारात्मक सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक हालातों से वह आज जूझ रहा है ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि अगर वह अपनी गलतियों को ना दोहराता रहता तो शायद हालात कुछ हद तक बेहतर हो सकते थे.


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खैर, जिसके भीतर सुधरने की चाह न हो उसे सुधारने का प्रयास करना भी फिजूल है. भारत समेत दुनियाभर में आतंकी हमले करने का बीड़ा उठा चुके पाकिस्तान ने पिछले काफी लंबे अरसे से पाकिस्तान की सीमा से सटे भारतीय राज्य कश्मीर में भी जेहाद के नाम पर नागरिकों को बरगलाना और उन्हें भारत में रहते हुए भारत के खिलाफ करने की कार्यवाहियां जारी की हुई हैं.


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अब इसे भारतीय सुरक्षा तंत्र की नाकामी भी कह सकते हैं या पाकिस्तान की ओर से लगातार किया जा रहा दुस्साहस लेकिन सच यही है कि यदा-कदा भारतीय सुरक्षा तंत्र और सरकार को उनकी कमियां दिखाने के लिए आतंकी हमलों को अंजाम देते रहते हैं और अपने इन कथित ‘साहसिक’ कार्यों के लिए खुद ही अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं. इतना ही नहीं इसके साथ ही भारत के हालातों पर खुलकर हंसते भी हैं.


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अब हाल ही में संसद हमले के दोषी अफजल को दी गई फांसी की सजा के एवज में पहले जहां हैदराबाद और फिर श्रीनगर में आतंकी हमले किए गए वहीं अब पाकिस्तान भी कश्मीरी जनता को सांत्वना देने का नाटक करने लगा है और पहली किश्त के तौर पर पाकिस्तानी संसद में अफजल की फांसी के विरोध में निंदा प्रस्ताव पारित किया गया.



इसके बाद आदतन भारतीय सरकार ने पाकिस्तान को अपनी हदों में रहने की नसीहत दे डाली. इस प्रस्ताव को पारित करने में पाकिस्तान का मकसद तो साफ था क्योंकि वह कश्मीर की जनता में फैले असंतोष और आक्रोश का फायदा अपने हक में उठाना चाहता था. पाकिस्तान यह हर सभंव कोशिश करता है कि कश्मीर के नागरिक उसके पाले में रहें ताकि जल्द ही और कुछ भी करके कश्मीर को पाकिस्तान की सरहद के भीतर ले लिया जाए. लेकिन पाकिस्तान की इस हरकत के बाद हर बार की तरह इस बार भी किसी भी राजनीतिक दल ने एक साथ मिलकर समस्या का समाधान ढूंढ़ने की बजाय एक-दूसरे पर तोहमत लगाना शुरू कर दिया है.



भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि कांग्रेस स्वयं इस समस्या का समाधान ढूंढ़े वहीं कांग्रेस के मंत्री नसीहतें देते फिर रहे हैं.


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इतना ही नहीं पहले पाकिस्तानी सैनिक सीमा पर तैनात भारतीय जवानों का सिर काटकर अपने साथ ले गए और हाल ही में पाकिस्तानी जेल में बंद भारतीय नागरिक का मृत शरीर तो वापस आया लेकिन उस शरीर के अंदर जितने भी जरूरी और उपयोगी अंग थे उन्हें पहले ही निकाल लिया गया.



भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ और उनके पूरे परिवार का अतिथि सत्कार किया था. इस घटना के बाद जब खुर्शीद को जन विरोध का सामना करना पड़ा तो उनका साफ कहना था कि पाकिस्तान के मंत्री की वह निजी यात्रा थी. उनका सम्मान तो अतिथि देवो भव: की तर्ज पर किया गया था लेकिन वह शायद यह बात समझ नहीं पाए कि जो अतिथि सम्मान करना नहीं जानता, यहां तक कि अपने हर संभव प्रयत्न द्वारा बस विनाश ही करना चाहता है, उसके साथ किसी भी तरह का कूटनीतिक संबंध बनाकर भारत को क्या हासिल हो सकता है.


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पाकिस्तान के लगातार बढ़ रहे ऐसे नापाक हौसलों ने एक बार फिर भारत सरकार की नीयत और नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या वाकई हमारा सुरक्षा तंत्र इस काबिल है कि अपने नागरिकों को सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल दे पाएगा?


फेल हुई कांग्रेस की रणनीति और गेंद आ गई भाजपा के पाले में

भारत की दोगली राजनीति का परिणाम है यह

तो क्या प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया ?


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