“भारत एक धर्मनिपरपेक्ष राज्य है, यहां कोई भी धर्म ना तो विशिष्ट है और ना ही निम्न. भारत की सीमा के अंदर रहने वाले लोग सभी धर्मों का आदर करने के लिए बाध्य हैं और भारत में किसी भी धर्म को ना तो ज्यादा महत्ता दी जाएगी और ना ही किसी को कम आंका जाएगा और अगर कोई सार्वजनिक तौर पर ऐसा करता है तो वह संविधान के अनुरूप सजा का भागीदार बन जाएगा.”
भारत को एक पंथ निरपेक्ष राज्य का दर्जा देते हुए संविधान में धर्मनिरपरेक्षता के सभी पक्षों को स्पष्ट किया था. इन पक्षों को समझने के बाद हम इस बात से अवगत हो जाते हैं कि जो व्यक्ति भारतीय लोकतंत्र के सभी घटकों और विशेषताओं का आदर करता है वही असल में राष्ट्रवादी है. लेकिन लगता है भाजपा को यह बात समझ नहीं आ रही और वह एक ऐसे चेहरे को अपना प्रतिनिधि बनाने की कोशिश में है जो खुद को हिंदू राष्ट्रवादी कहता है.
उल्लेखनीय है कि आजकल महाराष्ट्र में जगह-जगह नरेंद्र मोदी के ऐसे होर्डिंग्स लगाए गए हैं जिसमें लिखा है ‘मैं हिन्दू राष्ट्रवादी हूं’. भारत एक हिन्दू राष्ट्र नहीं है ऐसे में कोई खुद को हिन्दू राष्ट्रवादी किस आधार पर कहता है यह बात किसी के भी समझ के बाहर की है. हां, महाराष्ट्र में शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे की कमी को पूरा करने के लिए जरूर नरेंद्र मोदी को हिन्दू संरक्षक के तौर पर पेश किया जा रहा हो लेकिन उनका खुद को हिंदू राष्ट्रवादी करार दिया जाना कहां तक सही है?
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नरेंद्र मोदी की छवि एक सांप्रदायिक नेता की रही है और अब जब वह खुद को हिन्दू राष्ट्रवादी के तौर पर पेश कर रहे हैं तो कहीं ना कहीं यह साफ हो जाता है कि उनके अनुसार राष्ट्र का अर्थ सिर्फ हिंदुत्व से है. आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर यूं तो भाजपा की तैयारी जोरों पर है लेकिन ऐसे में हिन्दू वोटरों को आकर्षित करने के लिए अन्य पंथों से मुंह मोड़ लेने वाले राजनैतिक दल लोकतांत्रिक देश के नींव पर प्रहार करते प्रतीत होते हैं. इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि भाजपा और कांग्रेस ही देश की दो ऐसी पार्टियां हैं जिनके बीच चुनावों के दौरान कांटे की टक्कर रहती है और जबकि एक दल की सरकार बनना भारतीय राजनीति में मुमकिन नहीं है इसीलिए सरकार भी इन्हीं दलों में से किसी एक दल के आधिपत्य वाले गठबंधन से बनती है. वर्तमान हालातों और घटनाक्रमों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भाजपा तो हिन्दुत्व को ही महत्ता देने लगी है और उसे राष्ट्र भी हिन्दुत्व की धारा में नजर आता है. हो ना हो यह अन्य पंथों की अनदेखी और संविधान के आदर्शों का अपमान है. भले ही इस तरह का प्रचार भाजपा की सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है लेकिन उनकी यह रणनीति कहीं उनके कट्टर प्रतिद्वंदी कांग्रेस के पक्ष में साबित ना हो जाए इस बात की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
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