Menu
blogid : 321 postid : 1216

देश नहीं आलाकमान के प्रति वफादारी का इनाम !!

हैदराबाद बम धमाकों के बाद से विपक्षी खेमा और आम जन केन्द्रीय सरकार के विरोध में लामबंद नजर आ रहे हैं. हों भी क्यों ना जब देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिसके हाथों में सौंपी गई है अगर वही अपने दायित्वों को निभाने में नाकामयाब साबित हो तो रोष और आक्रोश उत्पन्न होना तो स्वाभाविक ही है. एक मुख्य बात यह भी है कि अगर विपक्षी दल सत्ता में होते तो भी उनसे यह चूक हो सकती थी लेकिन जब उनके प्रखर विरोधी और सत्तासीन सरकार से सुरक्षा में ढिलाई बरती गई है तो वह इस सुनहरे मौके को किसी भी हाल में अपने हाथ से गंवाना नहीं चाहते. उनके द्वारा केन्द्रीय सरकार का जो विरोध किया जा रहा है वह विपक्ष के मुख्य कर्तव्यों में शामिल है लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे से हुई इस चूक का विरोध उन्हीं की पार्टी के भीतर से शुरू हो गया है और पद पर बने रहने की उनकी काबीलियत पर सवाल उठाते हुए इल्जामों की बौछार करने वाले कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी हैं.


Read – भूल जाएं जलियांवाला बाग हत्याकांड के पीड़ितों का दर्द ?


अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि जब सुशील कुमार शिंदे का प्रमोशन उनकी कार्यक्षमता की बजाए वफादारी को देखते हुए किया गया है तो उनसे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है?



हैदराबाद में हुए बम धमाकों के बाद विपक्ष तो पहले ही उनके खिलाफ खड़ा था और ऊपर से जब कांग्रेस के भीतर ही विरोध की आवाजें उठने लगी हैं तो यह निश्चित तौर पर सुशील कुमार शिंदे के लिए नकारात्मक परिणामों का द्योतक बन सकता है. लेकिन यह मसला बस यहीं तक सीमित नहीं है. अभिषेक मनु के इस बयान को केवल शिंदे पर वार नहीं समझना चाहिए बल्कि ऐसा कह कर वह सीधे-सीधे कांग्रेस आलाकमान पर भी निशाना साधते प्रतीत हो रहे हैं. क्योंकि आखिरकार शिंदे को वफादारी का ईनाम बिना योग्यता परखे सोनिया गांधी ने ही तो दिया.


Read – फेल हुई कांग्रेस की रणनीति और गेंद आ गई भाजपा के पाले में


नेता विपक्ष सुषमा स्वराज सरकार पर अपने निशाने साध चुकी हैं. उनका कहना है कि नौ साल तक अफजल की फांसी को क्यों लटकाए रखा और जब फांसी दी तो संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए गए?



कुछ हद तक देखा जाए तो विपक्ष का सत्तासीन सरकार के प्रति कड़े तेवर रखना सही भी है क्योंकि भले ही हैदराबाद प्रशासन को अलर्ट किया गया हो लेकिन केंद्र की जिम्मेदारी बस यही तक सीमित नहीं होती थी. जाहिर है कि इसके बाद भी उन्हें यह ध्यान देना चाहिए था कि जिस इंतजामों की उन्हें दरकार है वह पूरे हुए हैं या नहीं. वाजिब सी बात है कि अगर केन्द्र इस मसले पर गंभीर होता तो शायद हैदराबाद में मारे गए मासूम लोगों को अपनी जान से हाथ ना धोना पड़ता.


भारत की दोगली राजनीति का परिणाम है यह

लेकिन अब जब विरोधी स्वर पार्टी के भीतर से ही सुनाई दे रहे हैं तो निश्चित तौर पर यह खतरे की घंटी साबित हो सकता है. एक जुमला तो आपने सुना ही होगा “बहती गंगा में हाथ धोना”, यहां भी कुछ-कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है.



हो सकता है अभिषेक मनु सिंघवी को लगा हो कि जब सुशील कुमार शिंदे की लापरवाही का विरोध हो ही रहा है तो क्यों ना लगे हाथ वह भी अपना काम कर जाएं. वैसे भी राजनीति में तो कोई किसी का सगा होता नहीं है और गलत आदमी का विरोध कर आप खुद को सही साबित तो कर ही सकते हो. फिर भले ही आप सही हों या गलत यह मायने नहीं रखता. दूसरी ओर यह भी हो सकता है कि वाकई अभिषेक मनु सिंघवी का नजरिया विस्तृत हो रहा हो और वह पार्टी को नहीं बल्कि वस्तुस्थिति को ध्यान में रख कर अंतरआत्मा की आवाज सामने ला रहे हों. खैर असल में सत्य क्या है यह तो वही जानें, राजनीति की माया को तो समझना वैसे भी आसान नहीं है.


Read

तो क्या प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया ?

राजीव गांधी के हत्यारों को जीवनदान मिलना चाहिए !!

आपसी सहमति थी तो फिर ‘रेप’ क्यों


Tags: sushil kumar shinde, Hyderabad blast, hyderabad bomb blast, abhishek manu singhhwi, abhishek, congress spokesperson, सुशील कुमार शिंदे, हैदराबाद बम धमाके, अभिषेक मनु सिंघवी




Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh