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ममता दीदी के तेवर: यूपीए में हलचल

राजनीति में गठबंधन अपने आप में ही सबसे बड़ी समस्या है. गठबंधन के साथियों की नाराजगी पूरी सरकार को पलट सकती है. आजकल ममता दीदी के तेवर यूपीए गठबंधन को लेकर तीखे नजर आ रहे हैं पर यह तेवर कब तक तीखे रहेंगे यह एक बड़ा सवाल है. गठबंधन का अर्थ यह होता है कि सभी पार्टियां मिलकर फैसले लें पर उन फैसलों का क्या जो सिर्फ एक पार्टी की मर्जी से लिए गए हों. ममता बनर्जी का यूपीए की सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा करना यूपीए सरकार को सोचने पर मजबूर कर देगा कि आखिरकार उसे करना क्या है. ममता की जिद के आगे झुक जाना है या फिर अपनी बात पर कायम रहना है. वैसे सोचा जाए तो ममता पहले भी बहुत बार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने की सोच चुकी हैं पर अंत में या तो वो कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के आगे झुक गईं या फिर अपनी जिद आंशिक रूप से सरकार से मनवा कर रहीं.


MAMTA DIDIममता आजकल कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार से डीजल के दाम बढ़ाने, रिटेल सेक्टर में एफडीआई की मंजूरी और गैस सिंलेडर के प्रयोग को सीमित करने के फैसले पर इतनी रूठी हुई हैं कि उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का साथ ही छोड़ देने के फैसला लेने की घोषणा कर दी है.


चाहे राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी हो या बजट में रेल किराया बढ़ाने का मामला या फिर पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में हुई बढ़ोत्तरी. ममता हर बार सरकार से अलग खड़ी दिखी हैं. ममता बनर्जी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान राष्ट्रपति की उम्मीदवारी को लेकर अड़ गई थीं. यहां तक कि रेल किराया बढ़ाने से जुड़े मामले में तो तत्कालीन रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी को अपना पद छोड़ना पड़ा था, पिछले साल रिटेल में एफडीआई का प्रस्ताव सरकार को ममता के रूठने की वजह से ही वापस लेना पड़ा था. सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में जब सात रुपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी की थी तब भी ममता ने रोल बैक की मांग की थी. उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए हामिद अंसारी के नाम के चयन पर भी ममता ने आपत्ति जताई थी.


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हालांकि, इस बार सरकार ने रिटेल में एफडीआई के फैसले पर टस से मस नहीं होने का फैसला किया है. अगर दीदी अपने फैसले पर कायम रहती हैं और अपनी पार्टियों के मंत्रियों को वापस लेने की कवायद करती हैं तो सरकार के लिए मंत्रिमंडल विस्तार की योजना को अंतिम रूप देना काफी हद तक मुश्किल का काम हो जाएगा. ममता बनर्जी कब किस से रूठ जाएं यह कहना जरा मुश्किल है. वह सिर्फ सरकार के खिलाफ ही मोर्चा नहीं खोलतीं बल्कि अपने लोग, अपनी टीम, अपनी जनता से भी कई बार नाराज हो जाती हैं.


ममता बनर्जी के रूठने की कहानी और रूठ कर सजा देने की कहानियां बड़ी मशहूर हैं. कार्टून विवाद पर प्रोफेसर से नाराज होकर उन्हें जेल भेजा और छात्र के बंगाल की राजनीति पर सवाल पूछे जाने पर उसे माओवादी करार दे दिया. ममता दीदी ने रुठने के मामले में अपनी तृणमूल पार्टी को भी पीछे नहीं छोड़ा. याद होगा लोगों को वो दिन जब ममता दीदी खबरों में बनी हुई थीं क्योंकि वो लोकपाल बिल पर अपनी टीम से नाराज हो गई थीं और वाम दलों से तो ममता दीदी का छत्तीस का आंकड़ा है जो शायद ही कभी खत्म होगा. साथ ही ममता बंगाल की गलत नीतियों के लिए वाम फ्रंट को जिम्मेदार मानती हैं. यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि आखिरकार ममता बनर्जी की आगे की रणनीति क्या होगी.


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