सोचिए जरा यदि यह कहा जाए कि आप अत्यधिक भ्रष्टाचार करें, गुनाह पर गुनाह करें और ऐसे वादे करें जो आप किसी भी कीमत पर पूरा नहीं करेंगे पर अचानक ही आप थोड़े से समय में अपने भ्रष्टाचार को छुपा कर अपनी छवि साफ दिखाने की कोशिश करें तो यह मात्र कल्पना ही होगी. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी और सूचना के अधिकार जैसे लोकप्रिय कानूनों के बूते दोबारा सत्ता में आई गठबंधन सरकार पिछले तीन वर्षों से महंगाई, घोटालों और अंतर्विरोधों से जूझ रही है तो ऐसे में थोड़े से समय में हर वो कोशिश करना चाहती है जिससे कि अपनी छवि को सुधार सके और 2014 के संसदीय चुनाव के लिए एक बेहतर विकल्प बन सके.
नाममात्र के लोकतंत्र में जब कोई पार्टी तानाशाह बन जाती है तो भ्रष्टाचारी मंत्रियों का प्रमोशन होता है और जो व्यक्ति भ्रष्टाचार का आरोप लगाता है वो सवालों के कटघरे में खड़ा होता है. इसका अच्छा-खासा उदाहरण तब देखने को मिला जब सलमान खुर्शीद जिन पर विकलागों के विकास के हिस्से का पैसा खाने का आरोप था उन्हें कानून मंत्री से विदेश मंत्री बना दिया गया और ऐसे मंत्रियों का प्रमोशन किया गया जिनके बचकाने बयानों से देश की आम जनता हैरत में पड़ गई थी. क्या यूपीए सरकार को यह भ्रम हो गया है कि वो अपने कार्यकाल में मंत्रिमंडल में ऐसे निरर्थक फेरबदल करके अपनी छवि को बेदाग बना सकती है. ऐसे में राजनीतिक जानकारों का यह मानना है कि यह मात्र भ्रम ही है और ऐसे भ्रम को सच में तबदील करने की सभी कोशिशें भविष्य में असफल ही साबित होंगी.
Read:सोनिया को 30 दिन में 13 बलात्कार की याद आई…
मीडिया के एक समूह से अब ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल के बाद अब अगले आम चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस संगठन को शीघ्र नया रूप दिये जाने की उम्मीद है जिसमें युवा महासचिव राहुल गांधी को अहम जिम्मेदारी सौंपी जायेगी और उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष या प्रधान महासचिव बनाए जाने की उम्मीद है. यह बात तो उसी दिन साफ हो गई थी जब मंत्रिमंडल में भारी मात्रा में फेरबदल हुआ पर राहुल गांधी को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था जो साफ जाहिर कर रहा था कि आलाकमान सोनिया गांधी ने जमीनी हलात से बेखबर राजकुमार के लिए कोई बड़ी तैयारी कर रखी है. पर सवाल यह है कि क्या राजकुमार बिना जमीनी हालात से रूबरू हुए भविष्य में होने वाले चुनावों के लिए अपनी पार्टी को मजबूत बना पाएंगे या फिर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक मैदान की तरह असफल हो जाएंगे. सत्ताधारी सरकार को इस बात में यकीन कर लेना चाहिए कि थोड़े समय में किए गए फेरबदल से अपनी छवि को बेदाग नही बनाया जा सकता है क्योंकि अब जनता झूठे वादों पर ऐतबार करने के लिए तैयार नहीं है.
Read Comments