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राहुल को बचाने के लिए मनमोहन की बलि ली जाएगी !!

मिशन 2014 जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, चुनावी रणभूमि का तापमान बढ़ता जा रहा है. राजनीतिक गलियारों से लेकर आमजन तक चारो तरफ एक ही तरह की चर्चा सुनी जा सकती है कि आखिर कौन होगा देश का अगला प्रधानमंत्री? जैसा कि हम सभी जानते हैं कि देश के दो बड़े गठबंधन यूपीए और एनडीए के बीच युद्ध होने की पूरी-पूरी संभावना है और यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि देश का अगला प्रधानमंत्री यूपीए गठबंधन के सबसे बड़े और प्रभावी दल कांग्रेस का सदस्य होगा या फिर नेशनल डेमोक्रेटिक अलाइंस यानि एनडीए के सबसे बड़े घटक दल भाजपा का.


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यूं तो इन दो गठबंधनों में शामिल और स्वतंत्र अस्तित्व वाली राजनीतिक पार्टियों से संबंधित कई सदस्य स्वघोषित तरीके से खुद को प्रधानमंत्री की रेस में शामिल कर चुके हैं लेकिन अभी तक कांग्रेस के युवराज और उपाध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा सदस्य नरेंद्र मोदी, जिनका कद क्षेत्रीय राजनीति के अलावा राष्ट्रीय राजनीति में भी दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है, का नाम प्रधानमंत्री पद की रेस में प्रमुखता से लिया जा रहा था. लेकिन अब राजनीतिक समीकरण बदलने के साथ-साथ शायद प्रधानमंत्री पद की रेस में अब तक सबसे आगे चल रहे राहुल गांधी ने खुद को इस दौड़ से बाहर कर लिया है इसलिए बाजी फिर आ गई है वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथ.


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उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखने के लिए तरस रहे पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने सोनिया-मनमोहन मॉडल को फेल करार दिया था जिस पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य जनार्दन द्विवेदी का कहना है कि सोनिया-मनमोहन का अद्वितीय मॉडल पूरी तरह सफल है और भविष्य के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण है. इतना ही नहीं जनार्दन का यह भी कहना है कि भविष्य में इस मॉडल की जगह लेने वाला कोई नहीं हो सकता. इशारों-इशारों में जनार्दन द्विवेदी ने यह साफ कर दिया कि आगामी लोकसभा चुनावों में अगर यूपीए सत्ता हासिल करने में कामयाब हो जाती है तो मनमोहन को ही प्रधानमंत्री पद प्रदान किया जाएगा.



स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास पर नजर डाली जाए तो देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के उत्तराधिकारी को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी सौंपने का रिवाज बहुत पुराना है और जैसा कि उम्मीद की जा रही थी कि लंबे इंतजार के बाद इस बार यह कुर्सी राहुल को सौंप ही दी जाएगी. लेकिन राजनीति ने फिर एक ऐसी करवट ली जो पूरी तरह अप्रत्याशित थी. दो कार्यकाल लगभग पूरे कर लेने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को फिर एक बार यह पद प्रदान किया जा सकता है.


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कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य जनार्दन द्विवेदी का यह कथन आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है कि इतनी मेहनत और जद्दोजहद के बाद राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जो पृष्ठभूमि तैयार की गई थी उस पर पानी क्यों फेरा जा रहा है?



अगर राजनीतिक मंथन करने के बाद कांग्रेस इस नतीजे पर पहुंची है तो इसके कई कारण हो सकते हैं, जिनमें सबसे बड़ा कारण है कांग्रेस की घटती साख और घटक दलों का यूपीए से खुद को अलग कर लेना. कांग्रेस यह बात समझती है कि आगामी लोकसभा चुनावों में वह किसी भी हाल में बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी और संप्रग के हाल से तो वह अच्छी तरह वाकिफ है कि कोई भी कभी भी खुद को अलग कर लेता है, जिससे कि सरकार के गिरने की संभावनाएं बन जाती हैं, जैसा आजकल देखा जा सकता है. ऐसे हालातों में जाहिर है कांग्रेस अपने युवराज के पॉलिटिकल कॅरियर के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकती. थोड़ा और इंतजार करना ही उन्हें सही निर्णय लग रहा होगा.

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दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि शायद कांग्रेस के लिए उसकी जीत संदेह का विषय है और वह राहुल जैसे कच्चे घड़े पर दांव लगाकर अपने संदेह को पुख्ता नहीं करना चाहती. कह सकते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में राहुल ने अभी-अभी कदम रखा है और अभी वह खुद अपनी पहचान नहीं बना पाए हैं, ऐसे में कांग्रेस का चेहरा बनकर वह कांग्रेस को जीत दिलवा ही नहीं सकते. इसीलिए एक बार दांव फिर मनमोहन सिंह पर ही लगाया जा सकता है.



तीसरा और सबसे गंभीर कारण यह है कि शायद इस बार मनमोहन सिंह को बलि का बकरा बनाया जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस अपने युवराज राहुल को आगे रखकर हारना नहीं चाहती. उसने सोच लिया है कि जब हारना ही है तो क्यों ना इस वजह से हारें कि उनके प्रतिनिधि फिर से एक बार मनमोहन सिंह थे, जिन्हें कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में जाना ही जाता है.


यही नहीं पता कि गैंग रेप पीड़िता को सिंगापुर किसने पहुंचाया !!

विकास चाहिए तो धर्म की राजनीति छोड़ो

प्राथमिकता तो नहीं पर गद्दी किसे बुरी लगती है


Tags: manmohan singh, prime minister manmohan singh, rahul gandhi, राहुल गांधी, राहुल गांधी प्राइम मिनिस्टर, कांग्रेस, prime minister manmohan singh congress


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