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‘उन चार सांसदों में से एक थे’:-अटल बिहारी वाजपेयी

लिखने की शैली कुशल हो, बोलने की शैली कुशल हो और बातों को गहराई से समझने की शक्ति हो ऐसे गुणों का सम्मेलन बहुत ही कम व्यक्तियों में नजर आता है. अटल बिहारी वाजपेयी का नाम उन सर्वगुण सम्पन्न व्यक्तियों में से एक है जो जिंदगी के हर पड़ाव पर अपने आपको साबित करते चले जाते हैं. ‘मैं देख पाता हूं, न मैं चुप हूं,  न गाता हूं’ यह भावपूर्ण पक्तियां भी अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा लिखी गई हैं. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में एक खास बात कही जाती है कि उनके भाषणों में अद्भुतपन  झलकता है और एक समय था जब अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिक गलियारों से अपने विरोधियों पर ऐसी रोचक टिप्पणी करते थे, जिससे उनका मकसद भी पूरा हो जाता था और कड़वाहट भी पैदा नहीं होती थी.

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‘चार सांसदों में से एक थे’

अटल बिहारी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर में हुआ था. 1957 का एक किस्सा है जब दूसरी लोकसभा में भारतीय जन संघ के सिर्फ़ चार सांसद थे. इन सांसदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन से कराया गया था. तब राष्ट्रपति ने बड़ी ही हैरानी के साथ कहा था कि ‘वो किसी भारतीय जन संघ नाम की पार्टी को नहीं जानते हैं’ और अटल बिहारी वाजपेयी उन चार सांसदों में से एक थे. अटल बिहारी वाजपेयी जब भी उस घटना को याद करते तो यही कहते कि आज कोई भी राजनीति के मैदान में यह नहीं कहेगा कि वह भारतीय जनता पार्टी को नहीं जानता है. लेकिन यह सबसे बड़ा सच कि भारतीय जन संघ से भारतीय जनता पार्टी और सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफ़र में अटल बिहारी वाजपेयी ने कई पड़ाव तय किए. नेहरू-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओँ में शामिल होगा जिन्होंने सिर्फ़ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर सरकार बनाई.


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‘पत्रकारिता का पाठ भी पढ़ा था’

कहते हैं ना कि मंजिल तक पहुंचने के लिए तमाम मुश्किल सफर से गुजरना पड़ता है कुछ ऐसा ही अटल जी के साथ था. एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए शुरुआती सफ़र ज़रा भी आसान न था. वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी. उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना कॅरियर शुरू किया था.


atal bihari vajpayee profileअटल बिहारी वाजपेयी और राजनीति

अटल बिहारी वाजपेयी 1951 में भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य थे. 1957 में जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया था. लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे थे. 1968 से 1973 तक वो भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे. 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया. इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और उनके पहले भाषण में ही लोगों को इस बात का भान हो गया था कि यह व्यक्ति भविष्य में राजनीति में प्रभावपूर्ण व्यक्ति साबित होगा.


1980 में वो बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे. 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे. अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं..1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे.


अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और भारत के प्रधानमंत्री बने. लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए. 1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया. गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली.


अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीतिक जीवन में नाम कमाने के साथ-साथ कुछ कविताएं भी लिखी हैं. जागरण जंक्शन आपको अटल जी की लिखी हुई कुछ पंक्तियों से अवगत करा रहा है:

ऊँचाई

ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफन की तरह सफेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है.
खेलती, खिल-खिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है.

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