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‘एम’ फैक्टर के आगे गिड़गिड़ाती कांगेस

Mayawati and Mulayam Singhकभी न चाहकर भी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों की ख्वाहिशों को पूरा करने वाली केन्द्र की मनमोहन सरकार आज संकट में घिरी हुई नजर आ रही है. कभी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सरकार का समर्थन करने वाली यही क्षेत्रीय पार्टियां आज सरकार पर चौतरफा हमले कर रही हैं. सरकार पर जनता-विरोधी का टैग लगाकर उससे समर्थन वापस लेने की घोषणा भी कर रही हैं.


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तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी की केंद्र सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा के बाद कांग्रेस अपनी सरकार को बचाने के लिए विभिन्न राजनीति पार्टियों के आगे मुंह मारती फिर रही है. वैसे अभी भी सरकार को उम्मीद है कि वह दिए हुए अल्टीमेटम में ममता को मना लेगी लेकिन अगर ऐसी स्थिति आती है जब सरकार ममता को मनाने में सफल नहीं हो पाती तो मामला बचे हुए अन्य ‘एम’ फैक्टर पर पूरी तरह से निर्भर हो जाएगा.


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लोकसभा में 272 के आंकड़े से इतराने वाली कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार को आज समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह और बहुजन समाज पार्टी के मायावती से उम्मीद है. यही दो पार्टियां हैं जो सरकार के हरेक मुद्दे पर बाहर से समर्थन करती आ रही थीं लेकिन यही आज प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, डीजल के मुद्दे पर सरकार को ललकारने पर तुली हुई हैं. केन्द्र सरकार की घट रही विश्वसनीयता को देखते हुए समाजवादी पार्टी भी पल्ला झाड़ती हुई नजर आ रही है. ममता के समर्थन वापस लेने के बाद वह आंख मूंदकर सरकार का समर्थन नहीं करना चाहेगी. सपा 20 सितंबर के भारत बंद के बाद ही इस बारे में अंतिम निर्णय लेने की घोषणा कर सकती है. वहीं कभी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक विरोधी रही मायावती की बहुजन समाज पार्टी केंद्र सरकार को समर्थन देने के मुद्दे पर स्पष्ट नहीं दिखाई दे रही है.


एक तरफ जहां ममता की घोषणा पर सरकार में हड़कंप मचा हुआ था तो वहीं दूसरी तरफ 18 सासंदों वाले डीएमके के भी 20 सितंबर के भारत बंद में शामिल होने की घोषणा ने सरकार के सिरदर्द को और बढ़ा दिया. इन सब के बीच देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे पर अभी पत्ते नहीं खोले हैं. शायद उनको यही लग रहा है कि जब केन्द्र के सहयोगी दल ही सरकार की फजीहत कर रहे हैं तो हमें ज्यादा उर्जा लगाने की जरूरत नहीं है.


आज सरकार के पास अपने खत्म होते साख को बचाने की चुनौती है. इस समय सरकार को पता है कि जनता के बीच उनकी छवि किस तरह से घट रही है और अगर मध्यावधि चुनाव हो जाते हैं तो इसका विपरीत प्रभाव कांग्रेस के ऊपर ज्यादा पड़ेगा.


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