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‘मैं भी अरविंद’ बनाम ‘मैं भी अन्ना’

arvind kejriwal anna hazareकोयला आवंटन में हुए भ्रष्टाचार के विरोध में रविवार को अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाला के नेतृत्व में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ताओं ने सरकार के साथ-साथ विपक्षी दलों को निशाने पर लिया. इसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी के आवासों को घेरने की योजना थी. इस आंदोलन में जहां अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ प्रशांत भूषण, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय, कुमार विश्वास जुड़े वहीं वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और टीम की सबसे अहम सदस्य किरण बेदी इस आंदोलन से नदारद दिखे.


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इस आन्दोलन से न जुड़ने पर अन्ना हजारे की नाराजगी तो साफ तौर पर दिखाई नहीं देती लेकिन पहली महिला आईपीएस ऑफिसर किरण बेदी की अरविंद केजरीवाल के इस आंदोलन पर असहमति जरूर दिखी. किरण बेदी ने इससे असहमति जताते हुए कहा था कि वह सत्ताधारी दल के नेताओं के घर के घेराव के पक्ष में हैं न की विपक्ष के. यहां बताते चलें कि केजरीवाल ने रविवार को हुए आंदोलन में सत्ताधारी दल के साथ ही मुख्य विपक्षी दल भाजपा को भी निशाना बनाया था. किरण बेदी के इस बयान पर यब अफवाहें उड़ने लगीं वो भाजपा से औपचारिक तौर पर जुड़ सकती हैं. लेकिन बाद में उन्होंने भाजपा से जुड़ने की अफवाह को गलत बताया.


यह पहली बार नहीं है जब अरविंद केजरीवाल और अन्य सदस्यों के बीच टकराव सामने आए हैं. इससे पहले न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े ने भी हिसार उपचुनाव में टीम अन्ना के कांग्रेस विरोध से असहमति जताई थी. इसके अलावा जब देश को एक राजनीति विकल्प देने की बात भी कही गई तब भी कुछ सदस्य जिसमें अन्ना हजारे भी शामिल थे, पूरी तरह से सहमत दिखाई नहीं दिए. आवाज यह भी उठी कि टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल अपने डिसिजन टीम के दूसरे सदस्यों पर थोपते हैं.


इस आंदोलन के बाद से ही मीडिया में यह कयास लगाई जाने लगा कि जो आंदोलन पिछले डेढ़ सालों से अन्ना हाजारे के नाम पर चलाया जा रहा था उसे अरविंद केजरीवाल ने हाईजैक कर लिया है. जो टोपी अन्ना के नाम से देशभर में लोकप्रिय हो चुकी थी अब उस टोपी पर ‘मैं हूं अरविंद’ छपा हुआ दिखाई दे रहा है. कल हुए पूरे आंदोलन को देखकर यही समझा जा सकता है कि जो लोग यह मानते थे कि अन्ना हजारे के बिना भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाना संभव नहीं है वह पूरी तरह से गलत साबित हुआ. आन्दोलन के जरिए अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में जो मकसद हासिल करना था उसमें कहीं न कहीं इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ता सफल दिखाई दिए.


तो क्या हम यही समझें कि आने वाले वक्त में भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी आंदोलन के लिए अन्ना हजारे की जरूरत नहीं है. क्या उनके बिना भी आंदोलन को सफल बनाया जा सकता है. यह बात तो सबको पता था कि अरविंद केजरीवाल टीम के सबसे शक्तिशाली सदस्य हैं. जब से भ्रष्टाचार के खिलाफ इंडिया अगेंस्ट करप्शन का आंदोलन अस्तित्व में आया है तब से अरविंद केजरीवाल अपने एकतरफा निर्णय की वजह से जाने जाने लगे. अन्ना हजारे का निर्णय कहीं न कहीं अरविंद केजरीवाल का निर्णय माना जाता था. अब शायद इस बात की पुष्टि भी हो रही है.


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