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अब तो चुप हो जाइए बाबा जी अब कितना ज्ञान दीजिएगा

कटाक्ष
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अपनी बात को सही साबित करने के लिए आसाराम बापू बयान पर बयान दिए जा रहे हैं और यह बयान पहले से भी ज्यादा विवादित और अहंकार से भरा लगता है. आसाराम बापू का कहना था कि पीड़िता को समझाना चाहिए था और उनसे यह आग्रह करना चाहिए था कि वो उसे छोड़ दें पर उसने ऐसा नहीं किया जिसकी वजह से यह सारा कांड हुआ. उनके अनुसार यह दुष्कर्म करते समय अगर अपराधियों को पीड़िता “भाई” का दर्जा देती तो इस प्रकार की हैवानियत की शिकार नहीं बनी होती. आसाराम बापू के कहने के मुताबिक अगर वो दूसरे का हाथ पकड़ कर कहती कि मैं असहाय हूं और अन्य से कहती तुम तो मेरे धार्मिक भाई हो तो उसका इस प्रकार शोषण ना हुआ होता.  इस बयान पर पहले से विवाद झेलते बाबा ने ना जाने क्या सोच कर अब दूसरा बयान उछाल फेंका है. अपने-आप को धार्मिक गुरु कहने वाले आसाराम बापू ने इस बार पहले से भी ज्यादा विवादित और बेतुका बयान दिया है. उनकी मानसिकता समझ में नहीं आ रही है कि आखिर वो क्या करना चाहते हैं, अपना बचाव करना चाहते हैं या और भी ज्यादा उलझना चाहते हैं.



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बाबा की दूसरी पारी!!: अपने ज्ञान से जनता को अभिभूत करने की कसम खा कर बैठे आसाराम बापू चुप होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. भले ही उनका विरोध बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. उनके बयान पर हुई हलचल के बाद जहां उनको इसे संभालने की कोशिश करनी चाहिए थी वहीं उन्होंने आग में घी डालने का काम किया है. अपने दूसरे बयान में जहां आसाराम बापू ने अपनी पिछले रिकॉर्ड को तोड़ा है वहीं कई सारे सारे और विवादों को हार के रूप में गले में पहन लिया है. अपने बयान पर और जोर देते हुए आसाराम बापू ने कहा कि उनके द्वारा दिया गया बयान बिल्कुल सटीक है. चलिए यहां तक तो ठीक था पर इससे आगे बढ़ने की क्या जरूरत थी बाबा जी!! जो आपने अपने आलोचकों और मीडिया को भौंकने वाले कुत्ते कह दिया. आखिर ऐसी भी क्या दुश्मनी है जो आपको अपनी आलोचना सहन नहीं हो पा रही है. आलोचना तो हर व्यक्ति की होती है और अगर इसे सही अर्थों में लिया जाए तो आलोचना आपके व्यक्तित्व को निखारने में बड़ी भूमिका अदा कर सकती है.



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मीडिया सच कहती है: मीडिया जनता का वो चेहरा है जो सियासत और असत्य के खिलाफ एक जंग छेड़े रहती है. अगर यह नहीं होती तो ना जाने आज भारत कहां लुप्त हो गया होता और शासन के नाम पर लूट मची रहती. आसाराम बापू को बोलने के पहले यह बात सोचनी चाहिए थी कि इस बात का परिणाम क्या होगा. आप अगर मीडिया को इस प्रकार के अपशब्द कहते हैं तो इसका सीधा मतलब यह है कि आप जनता को थप्पड़ मारते हैं. आसाराम बापू ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि शुरुआत एक कुत्ते के भौंकने से होती है इसके बाद अन्य भी अपने बारी का इंतजार करते हुए भौंकने के क्रम को बढ़ाते हैं. अपनी महता को दर्शाते हुए बाबा ने कहा कि यदि हाथी कुत्तों के पीछे दौड़ता है तो वह कुत्तों का महत्व बढ़ा देता है और हाथी अपनी धुन में आगे बढ़ता जाता है. अपनी वाणी को ना रोक कर आसाराम जी ने वो सारी हदें पार कर दीं जो उन्हें शायद नहीं करनी चाहिए थीं. जहां उनको इस विवाद से निकलने का रास्ता खोजना चाहिए था वहीं उन्होंने और कई सारे विवाद अपने सर पर लाद लिए.



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