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आसाराम बापू जी को बीमारी हो गई है. त्रिनाड़ी शूल की बीमारी. उनके भक्तों के लिए ये दुख भरी खबर है. उनके भगवान को बीमारी हो गई है. लेकिन आगे सुनिए इस भगवान को अपनी बीमारी का इलाज करने के लिए ध्यान की नहीं, ‘महिला’ तीमारदार की जरूरत है. आसाराम बापू को अपने इलाज के लिए डॉक्टर चाहिए, महिला डॉक्टर. मजेदार खबर तो यह है कि आसाराम को सिर्फ डॉक्टर का इलाज नहीं, महिला डॉक्टर भी चाहिए, वह भी पूरे 7 दिनों के लिए! आखिर महिला महिला होती है. पुरुष के हाथों में वह लाड़ कहां जो महिला की बातों में होती है. बीमार को ठीक होने के लिए दवाओं से ज्यादा दुलार की जरूरत होती है जो आसाराम बापू को सिर्फ महिला डॉक्टर ही दे सकती है.
अब हम-आप जैसे लोग इसकी चुटकी ले सकते हैं लेकिन उनके भक्तों की सोचिए जिन्हें यह सुनकर एक और आघात लगा होगा. ‘राष्ट्रपिता बापू’ के बाद इन दूसरे ‘बापू’ के सहारे उन्होंने भवसागर पार लगाने के कितने सपने देखे होंगे. बापू के जेल जाने से पहले ही इस सपने पर आघात लगा हुआ था. अब उनकी इस ‘त्रिनाड़ी शूल’ बीमारी की खबर जानकर वे दुख के अंध सागर में गोते लगा रहे होंगे. पर उनके लिए बापू जी की बीमारी एक खुशी की खबर भी हो सकती है. कैसे? भला भक्त अपने भगवान को ही भवसागर में डूबता देख खुश कैसे हो सकता है! सच है, भक्त को अपने भगवान पर भरोसा होता है. आसाराम के भक्तों को भी उन पर भरोसा है. ‘बापू जी भगवान’ को भी अपने भक्तों का उतना ही खयाल है जितना कि भक्तों को उनका. भक्तों के भरोसे को बनाए रखने के लिए ही तो वे अपनी बीमारी के लिए कोई रिस्क नहीं ले सकते. इसीलिए तो वे आम डॉक्टरों पर भरोसा न कर खास महिला डॉक्टर की मांग कर रहे हैं. वह भी कोई ऐरा-गैरा नहीं उनकी ‘नीता डॉक्टर’ ही होनी चाहिए.
बहुत ही गंभीर मसला है यह लेकिन लोग इसकी गंभीरता को समझ नहीं पा रहे हैं. लोगों के लिए यह एक हंसी का विषय बन गया है. बापू जी की भावनाओं का किसी को खयाल ही नहीं आ रहा. अजी यह तो देखिए कि बापू अपने भक्तजनों के प्यार से कितने अभिभूत हैं कि वे अपनी बीमारी के लिए जरा सी कोताही करने को तैयार नहीं. अरे, आम डॉक्टरों का क्या है! जरा सुनिए तो, उनकी इतनी बड़ी बीमारी को कह रहे हैं कि 2 घंटे में इलाज हो जाएगा. उन्हें कुछ हो गया तो उनके बेचारे भक्त तो बिन बापू के अनाथ ही हो जाएंगे. फिर उन बेटियों का क्या होगा जिनका उन्हें ‘शुद्धिकरण’ करना था. नहीं, वे अपनी बेटियों को अशुद्ध नहीं छोड़ सकते. ‘चाहे रूठे ये जमाना, चाहे मारे जग ताना, हमें तो नीता डॉक्टर से ही इलाज है कराना….’
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