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कांग्रेस के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार में घोटालों पर नज़र न डालें, क्योंकि ये आपकी पहुंच से बहुत बाहर हैं. यहां इतने घोटाले हुए हैं जिसे याद रखना भी मुमकिन नहीं है. कोयला से लेकर तेल तक की इस कड़ी में एक स्वभाविक मानसिक अवस्था वाले व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है कि इसे याद रखे और इसके ऊपर प्रतिवाद करे. खैर प्रतिवाद वहां होता है जहां “वाद” की परंपरा न हो और जो तंत्र पूरी तरह वाद से ग्रस्त हो वहां बोलने और चिल्लाने में कोई फर्क नहीं पड़ता है. अब तो राजनैतिक चिंतक भी इस सरकार की आलोचना करना छोड़ चुके हैं. आलोचना करना वो विधा है जिसके द्वारा कार्यशैली में बदलाव लाया जा सके और आलोचना को सहन करना एक बड़ी मानसिकता का परिचायक होता है लेकिन इस सरकार को इससे क्या सरोकार.
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(Avishek Manu Shinghvi) एक बार फिर टी.वी. पर अपनी पार्टी और उसकी आने वाली नयी भ्रष्ट योजनाओं से आम जनता को अवगत कराएंगे. शायद इस कायाकल्प का खर्च भी कहीं यह देश के लोगों से ही न वसूलें. पहले से ही लोग इनके द्वारा लाई गई योजना जो किसी चक्रव्यूह से कम नहीं है उससे पूरी तरह त्रस्त हैं पर गला कटने वाले बकरे को यह उम्मीद रखना बेकार है कि उसे छोड़ दिया जाएगा. कुछ ऐसी ही हालत हमारी है. हम भी खुद को कटने से नहीं बचा पाते हैं. खास कर ऐसे नेता जब तक देश की अगुवाई करते रहेंगे कुछ सोचना भी निरर्थक ही सबित होगा.
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ढोल की ताल पर प्रचार: ढोल की ताल पर अपने को सब के सामने लाने की बात तो आम है राजनीति में पर इस तरह के काम कर के चर्चा में आना एक अशोभनीय बात है. जिनके हाथ में देश की कमान है अगर वो ही अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर पाते हैं तो देश में हो रहे बलात्कार तो कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए. भारत का यह आचरण रहा है कि वो ऊपरी वर्गों से देख कर सीखता है और जिस देश का ऊपरी वर्ग ही इस प्रकार का हो तो निचले और मध्यम वर्ग से कोई विशेष आशा करना व्यर्थ ही है. जो सरकार अपने सहयोगियों में ऐसे नेता रखती है, जिसका चरित्र संदिग्ध हो तो उससे यह उम्मीद करना भी व्यर्थ होगा कि वो देश में हो रहे महिलाओं(Women) के ऊपर अत्याचार को रोकने में सफल सिद्ध होगी.
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