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आतिथ्य से इतर चाय एक धंधा है. इसमें एक शक्ति है पीने-पिलाने वालों को अपनी ओर खींचने की. चाय ने साम्राज्यों को धूल चटायी है. चाय ने नेता-मंत्रियों के होश ठिकाने लगाये हैं. अब जब चाय के विकल्प के रूप में दुनिया भर की चीजें रेस्त्रां, घरों में पसर चुकी है तो चाय का गौरवशाली इतिहास जानना अनुपयोगी नहीं लगता.
चाय में अफीम
चाय के वाणिज्यिक धंधेबाजों ने ग्राहकों को अपने दुकानों की चाय से बाँधे रखने के लिये उसमें अफीम मिलाना शुरू किया था. अफीम मिश्रित चाय को पीने वालों को उसका ऐसा चस्का लगा कि सुबह-शाम दुकान के ईर्द-गिर्द ग्राहकों का तांता लगा रहता. अफीम मिली रामप्यारी पीने से रामभरोसे टाइप लोगों की तिजोरी भरती रही. हालांकि, जल्दी ही इसका भांडा फूट गया.
चाय ने पहले भी उखाड़े हैं पाँव
चाय का अपनी तरह का यह कोई पहला इस्तेमाल नहीं है. इससे पहले इसका प्रसिद्ध इस्तेमाल अमेरिका में हुआ है. जब ब्रिटेन ने अमेरिका पर चाय के जरिये प्रतीकात्मक कर लगाया तो उसके विरोध में बोस्टन बंदरगाह पर खड़ी जहाजों की चाय पत्तियों को डुबो दिया गया था. यहीं से अमेरिकी क्रांति की नींव पड़ती गयी और अमेरिकी जमीन पर अंग्रेजों के पाँव उखड़ने लगे.
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भारत में वृहद उत्पादन के समय चाय को यह एहसास भी न हुआ होगा कि करीब पाँच साल बाद अस्तित्व में आने वाली “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” का कोई प्रचारक उसके नाम के इस्तेमाल से कभी सत्ता की सर्वोच्च सीढ़ियों पर चढ़ जायेगा. चीन को अफीम खिलाकर चाय पीने वाले अंग्रेजों ने भारत में वाणिज्यिक स्तर पर इसका उत्पादन अपने बजट को नियंत्रण में रखने के लिये किया था. तब शायद उन्हें यह अनुमान भी न होगा कि चाय के नाम पर सरकार बनाने वाला उनके देश की संसद को संबोधित करेगा. उन्हें शायद यह भी अनुमान न हो कि “चाय वाले प्रधानमंत्री” पद सम्भालते ही अश्वमेध यज्ञ की तर्ज पर समूचे विश्व के भ्रमण पर भारत का प्रचार करने निकलेंगे. उनसे इत्तेफाक न रखने वाले भले विदेश भ्रमण पर उनका मजाक बनायें, हकीकत यही है कि उन्होंने भारत का प्रचार किया है.
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इधर सरकार को लेकर संसद में उपजे गतिरोध को खत्म करने के लिये प्रधान जी ने फिर चाय का सहारा लिया है. कभी सत्ता में रही दूसरी पार्टियाँ विपक्ष में रहते हुए भी सत्ता की धुरी के आसपास रहना चाहती है. इस मंशा के पूरा न होने पर वो अक्सर हाय-तौबा मचाती है, जनता के बहाने अपने मुद्दों के लिये. प्रधानमंत्री को पर्यटक साबित करने के लिये जितनी हाय-तौबा मचायी गयी उससे आजिज प्रधान जी ने फिर से चाय का सहारा लेने में ही भलाई समझी. उन्होंने विपक्षी पार्टियों के झंडाबरदारों को चाय पर बुलाया. हालांकि, जिन्हें इससे उम्मीद बँधी हो, वो जान लें कि प्रधान जी की चाय अब तक विरोधियों के लिये कड़वी ही साबित हुई है.Next….
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