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इतिहास गवाह है कि जंग जीतने के लिए एक अदद घोड़ा सबके लिए जरूरी होता है. राणा प्रताप का घोड़ा हो या रानी लक्ष्मी बाई का, जंग में जीत के लिए एक सबसे तेज दौड़ने वाला बुद्धिमान घोड़ा होना बहुत जरूरी है. कभी लड़ाई के लिए घोड़े चुनना युद्ध के लिए सिपहसलार चुनने से कम नहीं था. आज पहले की तरह न लड़ाईयां होती हैं, न घोड़ों की जरूरत पड़ती है लेकिन रईसी शान में आज भी घोड़े पालना रईसों का शौक है. बड़े खानदान की निशानी हैं ये घोड़े. ये तो फिर भी खानदानी भी हैं और इन्हें जंग भी जीतनी है.
कोई इसकी गारंटी ले ले.
अब दिक्कत यह है कि इस घोड़े के लिए कोई भी ‘शुभ कामना’ नहीं कर रहा है. मालिक को भी यही डर है कि संजीवनी पर्वत के बाबा जो बूटी देंगे, अगर उन्होंने भी संजीवनी बूटी देने से इनकार कर दिया तो इस मालिक का क्या होगा. पहले ही 2जी, 3जी, कोयला घोटाला, बोफोर्स आदि दुश्मनों से चारों तरफ से घिरा यह मालिक बेचारा इनसे निपटेगा कैसे! इसी घोड़े पर चढ़कर तो यह मार-काट मचाता, दुश्मनों से बचता आ रहा था. अपने अंगरक्षक, इस घोड़े को खोकर बेचारा मालिक अपनी जान कैसे बचा पाएगा! खैर! सब राम की लीला है. संजीवनी पर्वत के बाबा के आशीर्वाद से अगर संजीवनी बूटी मिल गई तो घोड़े के साथ मालिक की जान भी बच जाएगी. ऐसे में अगर मालिक और उनके शुभचिंतक यह मंत्र जप सकते हैं, “घोड़ा-घोड़ा जपना, सारी मुसीबतों से बचना… घोड़ा-घोड़ा जपना, सारी मुसीबतों से बचना”..अरे भाई हमारे जाने का वक्त हो रहा है. हमे विदा कर लो. फिर अकेले में मंत्र जपते रहना! अलविदा!!
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