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हसीनों और दीवानों के नखरों ने दुनिया की नाक में हमेशा दम किया है. एक आशिकी हसीनाओं की…कि किसपर क्या देखकर दिल आ जाए कुछ कह नहीं सकते …एक दीवानगी मजनूं दीवानों की…कि एक पर चिपकते हैं तो फेवीकोल के जोड़ की तरह उसी पर चिपके रहते हैं…..मजनूं की क्या बात करते हैं…इन हसीना और दीवानों पर जरा गौर फरमाइए..लैला-मजनूं, हीर-रांझा की आशिकी भूल जाएंगे.
पर जरा ठहरना…इनकी आशिकी थोड़ी अलग है…थोड़ी हटके…!!
‘तानों की गली’ में सुनने में आया है कि ‘हमारी भारतीय सुंदरी’ …माफ करना…’एशिया की सुंदरी’ लेकिन ‘हमारी (भारतीय) संपत्ति’ सृष्टि राणा जी का दिल कहीं टूट न जाए इसलिए उन्होंने ‘मिस एशिया पेसिफिक’ का ताज पहनते ही इसे पॉलिटिक्स की खूंटी पर सुरक्षित टांग दिया है. जनाब, कृपया सृष्टि राणा जी के दिल को ढूंढने की आपाधापी न मचाएं क्योंकि ‘बुद्धिमान (खूबसूरत) बला’ सृष्टि राणा जी ने अपनी ही तरह खूबसूरत (बला) अपने दिल को सबसे मजबूत खूंटी चुनकर टांगा है. अब दंगल होते रहेंगे और तमाशे बनते रहेंगे.
अब आप कहेंगे हम तो हसीनाओं पर ही अटके हैं, दीवानों को तो भूल ही गए !! नहीं नहीं…ऐसा नहीं है…दीवाने तो इस दंगल के खिलाड़ी हैं. हम भला उन्हें कैसे भूल जाएं…!!
तो बात हो रही थी दीवानों की..ये दीवाने हमारे, खासकर गांवों के रखवाले हैं. हमारे रमेश जी! अरे…वही…हमारे जयराम रमेश जी..दीवाने हुए फिर रहे हैं आजकल. लेकिन अफसोस वे तो गांवों की पगडंडियों पर घूमते रहे और हसीना दूसरे खेमे की हो गई. अब करें क्या!! जब तक पता चला होगा कि हसीना आने को है, वे गांव की गलियों में घूम रहे होंगे. बेचारे ने वहां से निकलने की कितनी कोशिशें की होंगी लेकिन इनसे पहले ही हसीना के दिल तक श्रीमान मोदी जी पहुंच गए.
अब ग्रामीण विकास की बात तो इसीलिए की जाती है कि जरुरत पड़े तो सर्र से कहीं भी पहुंच सकें. कितना भी लैपटॉप या मोबाइल फोन बांट लो अगर बिजली ही न हो तो क्या करोगे. सड़क ही नहीं तो कितना भी रिक्शा, मोटरसाइकल चला लो…बैलगाड़ी की स्पीड से पहुंचोगे न!! अब भुगत लिए खुद ही…मोदी जी तो तकनीक की गाड़ी में बैठकर हर जगह बुलेट की तरह पहुंच जाते हैं. कभी ‘कोकिला’ की आवाज में बैठकर अपने नाम की मधुर तान छेड़ते हैं तो कभी हसीना की जुबान से वाहवाही लूटते हैं. आलम यह है कि हर हसीना आजकल मोदी के नाम की माला जप रही है और बेचारे ग्रामीण धारा ‘रमेश जी’ हाथी और लोमड़ी की खूबियां गिना रहे हैं…
चलो कोई नहीं..हसीनाओं की आशिकी है ही कुछ ऐसी चीज. कोकिला पहले ही मोदी के सुर लगा रही थी अब रणभेरी बजने से पहले ही ‘चुनावी आशिकी के दंगल’ में हमारी हसीना ‘राणा’ भी आ पहुंची हैं, वह भी मोदी के खेमे से. अब दो-दो हसीनाओं की बिजलियां कैसे झेलें….तो रमेश जी दीवानगी के आलम में अभी भी हाथी-लोमड़ी की खूबियां ढ़ूंढते हुए जंगलों की खाक छान रहे हैं. जरा कोई इन्हें बताए कि आज हसीनाएं ‘ऐरावत’ पर नहीं..ऐरोप्लेन से घूमा करती हैं….और अपने खेमे को बचाना है तो गांवों की पगडंडियों से उठकर रमेश जी ‘चलो रे लैपटॉप-गाड़ियां शहरों की तरह सरपट..’ की रट लगानी होगी…
अब क्या फायदा अगर हसीना को बॉर्डर पर रोक ही दिया. पहले ही दूसरे पाले में थी, अब तो और नाराज हो गई होगी…चलो कोई नहीं..यह तो खेमों के आपस की बातें हैं. चुनावी दंगल तो बस आने ही वाला है. तब तक तो ऐसी कई हसीनाएं आएंगी..जाएंगी. अब हसीनाओं के नखरों की कौन जाने. रमेश जी और उनका खेमा बेचारा ठहरा गांवों को समेटकर चलने वाला. उन्हें क्या पता शहरों की हसीनाओं को कैसे रिझाते हैं. बुलेट की रफ्तार से मोदी स्वप्न सुंदरी के दिल में उतरें या कोकिला की आवाज में बस जाएं या इस नई ‘राणा हसीना’ के दिल के बादशाह बनें..हमें क्या हम तो हाथी की चाल से ही गांवों की खाक छानेंगे. ये शहरी सुंदरियां लोमड़ियों को रिझा सकती हैं, चुनावी दंगल नहीं जिता सकतीं. सही है…सबके अपने नखरे हैं. हसीना के नखरे हैं तो दीवानों के क्यों न हों!! आगे-आगे देखते हैं…और होता है क्या-क्या!!
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