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पब्लिक डिमांड पर नेता नहीं वारिस उतारे जा रहे हैं

कटाक्ष
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महिला दिवस से ठीक पहले आरजेडी के मसीहा लालू प्रसाद यादव ने अपनी बड़ी बेटी मीसा भारती को लोकसभा चुनाव के लिए पाटलीपुत्र से प्रत्याशी बनाकर अन्य राजनीतिक पार्टियों के सामने एक मिसाल जरूर पेश की है और वह भी पब्लिक डिमांड पर!


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हैरानी की बात है, आजकल जनता भी नाजाने किस-किस तरह की डिमांड करने लगी है. जहां उसे सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास आदि की मांग करनी चाहिए, वहां वह चाय वाले, आयकर विभाग वाले आदि नेता की मांग करने लगी है. वैसे लालू ने अपनी पुत्री को लोकसभा चुनाव में खड़ा करके जनता की कौन सी मांग पूरी की है यह समझ से बाहर है क्योंकि मीसा को राजद का प्रत्याशी बनाना राजद के भीतर और बाहर सभी को आश्चर्यचकित कर देने वाली खबर है.


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खैर जो भी है, लालू ने पब्लिक डिमांड को पूरा करने के लिए भले ही जनता की राय नहीं ली हो लेकिन आरएनडी (रिसर्च एंड डेवलपमेंट) जरूर किया है. पहला रिसर्च तो यही है कि वह समझ चुके थे कि यह सही समय है जब वह अपने राजनीतिक वारिस के बारे में सोचें. अपने बेटों, तेजस्वी और तेज प्रताप, पर दांव नहीं लगा सकते क्योंकि वहां अनुभव और परिपक्वता आड़े आ जाती है, जो राजनीति की सबसे जरूरी योग्यता मानी जाती है. ऐसे में उन्हें अपनी बड़ी बेटी पर ही दांव खेलना पड़ा.


दूसरा उनके रिसर्च में कहीं न कहीं कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि, एनसीपी प्रमुख शरद यादव और सबसे ज्यादा मुलायम और पासवान की भूमिका है, जिन्होंने राजनीति के अखाड़े में अपने वारिसों को उतारकर अपना भविष्य सुरक्षित कर लिया है और इस मामले में केवल लालू ही लेट चल रहे हैं. वैसे भी जब उनके भविष्य पर दागी सांसदों की अयोग्यता वाला कानून फन उठाए बैठा है, तो ऐसे में उन्हें राजनीतिक वारिस की सबसे ज्यादा दरकार है.


अब जबकि महिला दिवस के उपलक्ष्य में लालू प्रसाद यादव ने पब्लिक डिमांड पर यह फैसला लिया है तो यह तो हो नहीं सकता कि देश की अन्य राजनीतिक पार्टियां इसपर अमल न करें. अब आगे-आगे देखते हैं लालू के कंपिटीशन में और क्या-क्या होता है.


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