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अगर पूछा जाए कि बूढ़े होने का गम सबसे ज्यादा किसे है तो सबसे पहला नाम हमारे ‘दादा’ का होगा. अरे नहीं समझे ‘दादा’, दादा वही हमारे लालकृष्ण आडवाणी जी. 86 साल के आडवाणी जी बेचारे बूढ़े क्या हुए उनकी तो लुटिया ही अधेड़ों ने डुबा दी. वे चीखते रह गए कि आखिर क्या कमी है उनमें कि वे प्रधानमंत्री नहीं बन सकते लेकिन किसी ने उनकी सुनी नहीं. और तो और, अब दादा को पक्का दादा वाला काम देने की कह रहे हैं.
सुनने में आया है कि दादा अब लोकसभा के स्पीकर बनेंगे. जैसे सभी दादा बच्चों की चूं-चपड़ पर चुपचाप रहा करते हैं, बीच-बीच में लाठी से डरा दिया करते हैं ऐसे ही बेचारे आडवाणी अब लोकसभा में गाल पर हाथ रखकर बैठे चुपचाप सांसदों की चीख-चिल्लाहट सुना करेंगे, झपकियां लिया करेंगे और जैसे ही सभापति महोदय, सभापति महोदय की चीखें ज्यादा ऊंची होकर उनकी नींद में खलल करेंगी वे जोर से माइक पर चिल्लाकर सबको चुप करा दिया करेंगे. ठीक वैसे ही जैसे पहले दादाजी के साथ परिवार के सभी बच्चे एक साथ पढ़ने बैठते थे. दादाजी ऊंघते हुए बस उनकी बातें सुना करते थे और जब देखा बच्चे पढ़ाई की बजाय शरारत ज्यादा कर रहे हैं तो डांट दिया. चलो अच्छा है दादा खाली तो नहीं रहेंगे अब!
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