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पहले अपना तो पेट भर लें, जनता की तब सोचेंगे

कटाक्ष
कटाक्ष
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भारत में कोई भी बात असंभव नहीं है. इस घटना के बाद तो और भी ज्यादा भरोसा हो गया है अपने राजनेताओं पर कि वह किसी भी विभाग को अनछुआ नहीं रहने देंगे. अगर किसी ने अपने राज्य में कुछ छोड़ भी दिया तो दूसरी सरकार आकर उस कमी को पूरी कर देती है. पहले तो चारा और यंत्र तंत्र तक ही यह सीमित थे पर आज तो ये इंसानों का शोषण करते-करते विकलांगों तक अपने प्रयोग करने लगे हैं. हाल की एक घटना के आधार पर इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि भारत में किस प्रकार मानवता का हनन तेजी से हो रहा है पर इसे रोकने में सारे विकल्प व्यर्थ हैं. विकल्प भी वहीं कारगर होते हैं जहां स्थितियों को बदलने की चेष्टा हो.


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Salman khurshid






क्या अब यही बाकी था

ज़किर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी लुइस खुर्शीद द्वारा चलाया जाता है. इस ट्रस्ट के बारे में एक ख़बर निकल कर आई है कि इस ट्रस्ट ने 71 लाख रुपए की चपत लगाई है. यह पैसे विकलांगों के लिए आए थे जिससे उनकी जरूरत की वस्तुएं खरीदनी थीं. जब इस योजना के पैसे भी हज़म किए जा सकते हैं वहां आम आदमियों की हालत आप समझ ही सकते हैं. राजनीति इतनी बर्बर कैसे हो सकती है समझ में नहीं आता. जहां विकास के नाम पर कुछ नहीं है वहीं राजनेता अपने विकास के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.


गलती दोनों पक्ष की है

सिर्फ एक पक्ष को दोषी बनाना अच्छा नहीं है. यहां की जनता भी उतनी ही कमजोर है जितने की यहां के राजनेता ताकतवर. हम उन्हें सारे अधिकार सौंप चुके हैं और अब हमारे पास सहने और प्रतिवाद करने के अलावा और कुछ भी नहीं है. जिस प्रकार से हम रोज़-रोज़ सियासत की नयी छवि से रूबरू हो रहे हैं यह कहीं न कहीं हमें यह जरूर बता रहा है कि हमारी कोई बिसात नहीं है. वो जो चाहे कर सकते हैं हम बस अवलोकन ही कर सकते हैं. पर यह भी बात सही है कि अगर जनता ये सब देखेगी तो क्यों हम सरकार बनाते हैं. और अगर सरकार द्वारा नियुक्त किए गए अधिकारी ऐसा करेंगे तो किस प्रकार जनता मौन रहेगी.


आंख वालों का अंधापन

विकृति जन्मजात नहीं होती या तो लोग उन्हें पैदा करते हैं या उसकी ओर आकृष्ट होकर उसके अनुरूप बन जाते हैं. खास कर आज की राजनीति में ऐसी विकृति फैली हुई है जिससे राजनेता कितना भी बचने की कोशिश करें पर ऐसा करने में वह सफल नहीं हो पाते हैं. अब क्या करें सब की अपनी मजबूरी होती है. ‘ये’ अपना ख्याल नहीं रखेंगे तो देश का ख्याल कैसे रख पाएंगे. क्योंकि एक पुरानी कहावत है ‘सुधार घर से शुरू होता है’ तो अभी आप मान के चलिए कि ये अभी अपने घर को सुधार रहे हैं. इसके बाद ये देश के बारे में अवश्य सोचेंगे बस हमें निश्चिंत होकर इंतजार करने की जरूरत है.


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