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सूचना: यहां बंदरबांट हो रहा है !!!!!

कटाक्ष
कटाक्ष
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भारत पूरी तरह से एक राजनीतिक देश है. यहां राजनीति घर से शुरू हो कर चौपाल फिर संसद तक पहुंचती है. जिस तरह बाज़ार में सामान बेचने की भीड़ लगती है ठीक उसी तरह आजकल राजनीति में ओहदे बेचे जा रहे हैं. इसका कोई नियम धर्म नहीं है बस बेचने की अक्ल और खरीदने के लिए सामर्थ्य चाहिए. यहां लोगों ने माथे पर अपने दाम के बोर्ड लगा रखे हैं. रूह भी उनकी कांपती है जिसके भीतर अभी संवेदनाएं शेष बची हों पर भारत के बाजारवाद की बात ही अलग है. यहां सबसे पहले आत्मचिंतन और रूह को मार डाला जाता है जिससे वो अधीन होने में अवरोध न बने. यहां जिस ताक पर आत्मा रखी हुई है वो इतनी धूसर हो चली है कि उसे साफ करने पर भी कोई खास फ़ायदा नहीं होने वाला है.


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यह विश्वासपात्र नहीं है !! – न जाने और कितनी बार इस मंत्रिमंडल में फेरबदल किया जायेगा और जाने यह किस तरह का विकास करना चाहते हैं जो निरंतर अलग-अलग चेहरे को सामने ला रहे हैं. यहां चौतरफा विकास किया जा रहा है(अपने लिए). सरकार इतना उच्च स्तरीय फैसला कैसे कर लेती है यह सोचने वाली बात है. पहले तो लोगों के सुनने वाले यन्त्र ले लिए जाते हैं फिर उनके सामने चिल्ला कर अपनी योजनायें बताते हैं. आज की राजनीति में घनत्व को मूक करना कोई बड़ी बात नहीं रह गयी है, ये बहुत सारे ऐसे खिलौने रखे हैं जिससे आराम से यह जनता को बहला लेते हैं और अगर उससे भी बात नहीं बनी तो “लाठी सर्वदा पूज्यतम:” वाला विकल्प कभी खाली नहीं जाता है.


हमें विकास करना है – इस देश को विकास की बहुत आवश्यकता है जिसके लिए हमारे नेतागण दिन रात मेहनत कर रहे हैं. पुराने चेहरे को पढ़ने में काफी दिक्कतें आती हैं इसलिए इन्होंने उसे हटाना ही अच्छा समझा. देश की बड़ी कंपनी को जो फ़ायदा नहीं पहुंचाये उसे मंत्री बने रहने का कोई हक नहीं है. अगर उसे नहीं हटाया गया तो वो देश को बर्बाद कर देगा और फिर बड़ी कंपनियां कैसे अपना योगदान दे सकेंगी देश के विकास में? एक देश को चलाने में कितनी बातों का ध्यान रखना पड़ता है ये जनता क्या जाने. हमारे देश में दो तरफ से धारा में धन बहता है जिसका एक बड़ा अंश कार्यालयों में ठहर जाता है और दूसरी धारा में इतना बहाव ही नहीं होता है कि वो जनता तक पहुंच सके. बस फेरबदल तक ही सीमित है यह विकास न तो इसका कोई उद्देश्य है और न ही कारण.


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