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रुपया गिरा हुआ है न कि नेता

कटाक्ष
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non plan expenditure cut in india in hindiखबर आई है कि कांग्रेस सरकार विधायकों और नेताओं के सरकारी खर्चों में कटौती करने वाली है वह भी 1 नहीं, 2 नहीं पूरे 10 प्रतिशत. अब आप यह नहीं कह सकते कि महंगाई की मार में बस आप ही झुलस रहे हैं. आपके अगुआ, देश के नेता आपकी हर मुश्किल को अपने सिर लेने को तैयार हैं. तो आइंदा किसी बहस में कृपया ये न कहें कि देश के नेता एसी रूम और एसी गाड़ियों में बैठकर सब कुछ हल्के से लेते हैं. अरे भाई चलते-चलते अगर अगर उन्होंने हल्का-फुल्का फलों के दो-चार गुच्छों का नाश्ता और दो-चार ग्लास जूस से प्यास बुझा लिया तो यह तो आपके लिए ही न कि आप अपने नेता को मोटा-ताजा, स्वस्थ देखकर खुशी से बाग-बाग हो उठें. इतना खयाल है देश के नेताओं को आपका कि अपना पेट फटने से ज्यादा आपकी खुशी की चिंता है.

इससे एक बार यह स्थिति भी साफ हो गई है कि रुपया गिरा हुआ है न कि नेता. गिरे हुए रुपए ने एक बार भी लोगों के बारे में, देश के बारे में नहीं सोचा, और सबको महंगाई की आग में झोंक दिया. सोचिए जरा 60 सालों तक देश का नमक खाने के बाद भी रुपए ने एक बार भी देश के नमक की लाज तोड़ने में हिचक नहीं की. क्या उसे एक बर सोचना नहीं चाहिए था कि इस देश के नेता अभी बहुत कमजोर हैं, बेचारे गरीबों को अभी भी 32 रुपए में एक दिन का खाना मिलता है 52 रुपए में नहीं. बेचारे नेता जनता का पैसा बचाने के लिए 20-20 रुपए में, 25-25 रुपए में संसद भवन में खाना खाने को मजबूर हैं ताकि बेचारी गरीब-दुखियारी जनता के लिए 5-10 रुपए तो बच सकें.

अब बताइए भला अगर रुपया बेशर्म की तरह देश की इज्जत की परवाह किए बिना डॉलर के पैरों में गिर पड़ा तो इसमें गलती तो रुपए की है. उसकी गलतियों की सजा क्या आप भुगतने को तैयार हैं? नहीं हैं. महंगाई में झुलस रहे हैं आप लेकिन खुशी-खुशी रुपए का यह दर्द नहीं लिया है आपने, बल्कि हर बार जलने से पहले हजार गालियां ‘निगोड़े रुपए’ को सुना देते हैं. लेकिन केंद्र सरकार की दरियादिली देखिए कि उन्होंने अपने ही नेताओं को खुशी-खुशी इस महंगाई की आंच में झोंक देने का निर्णय ले लिया और उनके लाखों के सरकारी खर्चों में पूरे 10 प्रतिशत की छुट्टी कर दी. बंगाली भाषा में बोलें तो केंद्र सरकार तो फिर भी इनका ‘दादा (बड़ा भाई)’ है, छोटों पर जैसा चाहें हुकुम चलाएं लेकिन जनता के लिए इन नेताओं का दर्द तो देखिए कि किसी ने जरा भी ‘चूं-चपड़’ तक नहीं की. मान गए.

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अब आप ही बताइए कि पेट्रोल-पेट्रोल रटते हुए रुपए ने पेट्रोल को आपसे दूर करने का पूरा मन बना लिया था. गिरा नामुराद रुपया और अपने गिरने का जिम्मेदार ठहरा गया पेट्रोल को. क्यों भाई, क्यों मुरझाए पेट्रोल आपकी बेशर्मी की छाया से? हमारी गाड़ियों को चार्ज करता है पेट्रोल, अगर रुपए को जलन होती है कि पेट्रोल के कारण उसे नेताओं के नाम पर लाखों में अपने भाई-बहनों (लाखों रुपए) को नेताओं की सेवा में लगाना पड़ता है तो यह आपकी परेशानी है. भई नेता हैं ये भारत के! देश की सेवा में जाने कितनी गाड़ियां इन्हें मजबूरन खरीदनी पड़ती है, आखिर नेताओं की शान का सवाल है! क्या कहेंगे लोग कि भारत में नेताओं के पास एक गाड़ी है. जनता की इज्जत का सवाल है. अब गाड़ियां खरीदेंगे तो उसे चलाना भी तो पड़ेगा, नहीं तो अमेरिका भारतीय नेताओं को कंजूस कहकर खिल्ली नहीं उड़ाएगा. इन ईमानदार नेताओं की देशभक्ति का आलम तो देखिए कि अमेरिका के सामने देश की शान रखने के लिए कि वे हमें कंजूस न कहें, बस इस डर से बेचारे कई-कई गाड़ियां अपने रिश्तेदारों के लिए सरकारी फंड से खरीदते हैं, अपने बच्चों को लाल बत्ती गाड़ी में ही स्कूल भेजते हैं भले ही उन्हें संसद भवन जाने में देर हो जाए. इतने बड़े त्याग का शिला तो देखिए उन्हें ये मिलता है कि भ्रष्ट और बेईमान नेता की उपधि उन्हें दे दी जाती है. लेकिन सच्ची देशभक्ति जिसे कहते हैं इन नेताओं और केंद्र सरकार ने इसका परिचय दिया है.

वे अपने दिल पर पत्थर रखकर देश की इज्जत से समझौता करने को राजी हो गए हैं. सरकारी खर्चों में 10 प्रतिशत की कमी करवाकर अब वे गाड़ियां नहीं खरीदेंगे. रुपए को मनाने के लिए उसकी ‘जी हुजूरी’ करने को भी तैयार हो गए हैं. इसलिए पेट्रोल के खर्च को भी ‘लाखों’ के बदले ‘लाख’ में कर देंगे. आखिर देश की आम-गरीब जनता के दर्द का सवाल है. उन्हें 32 रुपए में खाना मिलता रहे इसके लिए हम संसद भवन में 20 रुपए में सुस्वादू पकवान खाकर अपना स्वास्थ्य खराब करते रहेंगे. आखिर नेता का फर्ज होता है अपनी जनता का दुख-दर्द लेना. वे अपनी इस जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाएंगे.

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Non Plan Expenditure Cut in India in Hindi

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