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सबहीं नचावत ई अम्बानी

कटाक्ष
कटाक्ष
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नृत्य तो लोक संस्कृति रही है भारत के लिए, अलग-अलग प्रदेश के भिन्न-भिन्न नृत्य, कुछ कार्यालयीय नृत्य, कुछ चापलूसी नृत्य, कभी सिर पर नृत्य, तो कहीं सड़क पर नृत्य और इनमें सबसे उच्च कोटि का नृत्य संसद में होता है. जिसमें चारों तरफ से लोग अलग-अलग तरह के नृत्य प्रस्तुत करते हैं. एक योजना के अंतर्गत इस नृत्य को राष्ट्रीय नृत्य घोषित करने के बारे में सोचा जा रहा है जिससे यह देश के कोने-कोने तक अपना रंग बिखेर सके. सारी व्यवस्थाएं की गयी हैं कि इस नृत्य में पूरा देश शरीक हो सके.


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नृत्य की सबसे नयी विधा: यह नृत्य की सबसे नयी शैली है  जिसमें खुद की इच्छा से ज्यादा दूसरों की इच्छा का ध्यान रखना होता है. पहले की कला से आज की कला में कुछ अंतर आया है, आज अपने आंतरिक तृप्ति से ज्यादा दूसरों की जरूरतों का ध्यान रखना एक परंपरा हो गयी है. इस परंपरा का मुख्य तौर पर राजनीति में प्रयोग किया जा रहा है. इसकी सबसे ज्यादा जरूरत शायद राजनीति में ही पड़ती है आखिर यहां बहुत लोगों को खुश जो रखना होता है. बिना खुश किए गुजारा कैसे होगा इस रणभूमि में. किसी न किसी रूप में व्यवसायी वर्ग का राजनीति से जुड़ना ही इस नृत्य का जनक रहा है. बिना इसके इसकी उत्पति संभव ही नहीं है. सरकार के नियमों पर आधारित अर्थव्यवस्था आज पूरी तरह से बदल चुकी है और वो पूरी तरह से उनके हाथों में जा फंसी है जो ना चाहते हुए भी अपने हाथों में सत्ता को निजी फायदे के लिए रखना चाहते हैं. भारत में जहां तय किया गया है कि एक व्यक्ति के एक दिन का खर्च मात्र 32 रुपए है वहीं न जाने क्या ऐसी जरूरतें आ पड़ती हैं माननीय मंत्रियों को जो इतनी व्याकुलता से अर्थ के पीछे भागे जा रहे हैं.


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आखिर तेल भी क्या आग बुझाती है: तेल की खपत यहां रोटियों से भी ज्यादा है. कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां प्रगति के नाम पर मात्र कागज़ के दस्तावेज हैं. मुकेश अम्बानी की गहरी दोस्ती रही है किसी भी सत्ता पक्ष के साथ चाहे वो कांग्रेस हो या बीजेपी. मुकेश अम्बानी के तेल घोटाले पर पूरी मंत्रिमंडल का टूट कर बनना इस बात का परिचायक है कि सरकार को चलाने में किसी न किसी रूप उद्योगपति बड़ी भूमिका अदा कर रहे हैं. इससे एक पक्ष को जितना लाभ होता है, उसका आंशिक फायदा भी आम जनता तक नहीं पहुंच पाता है. इस बात से भी मुंह नहीं फेरा जा सकता है कि कहीं न कहीं सरकार को कोई भय है इनको कष्ट पहुंचाने से और एक बड़ा डर व्याप्त है. खैर यह भारत है जहां यह कोई नयी बात नहीं है नृत्य तो लोक संस्कृति रही है भारत के लिए !!!


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