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पूत कपूत भले हो जाएं, ये माता कुमाता नहीं सौतेली माता हैं

कटाक्ष
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आमंत्रण है….माता के दरबार में 2014 में आप सभी का जगराता है. मैय्या के दरबार में जो भी आता है वादा है ये मैय्या का…कि वह भिखारी बनकर जरूर जाता है. बड़े आदर से एक पगड़ी वाले सरदार जी आए थे. उन्हें शिकायत थी कि उनकी पगड़ी बड़ी सादी सी है. पगड़ी में उन्हें डिजाइंस चाहिए थे तो वे भी तोहमत और काले धब्बों का डिजाइनदार पगड़ी लेकर अब मैय्या के दरबार से जा रहे हैं. 10 सालों तक मैय्या से मिलने की कृपा किसी को नसीब नहीं हुई क्योंकि ये सरदार जी मैय्या की सेवा में, मैय्या के भक्तों की सेवा कर रहे थे ताकि अपनी सादी पगड़ी पर फूल पत्तियां काढ़ सकें. अब जब इसे पाकर दरबार से विदा हो रहे हैं, मैय्या खुद भक्तों को दर्शन देने आ रही हैं. तो एक बार फिर बोलो…माता रानी की जय!


article-2158868-1397FC81000005DC-258_468x524हां, तो आप जानना चाहेंगे कि इस माता रानी की कृपा आप कैसे प्राप्त कर सकते हैं. भाई..क्यों ऐसा प्रश्न अपने मन में लाकर माता को सवालिया बनाना चाहते हो? माता तो माता है…मेरी माता..आपकी माता..सबकी माता होती है…वह केवल अपने राजकुमार की माता नहीं होती. वह तो पूरे देश की माता होती है. अब इस पर आप सवाल नहीं उठा सकते कि सौतेली माता की तरह देश के बाकी बेटों का खाना लूटकर अपने बेटे को खिलाना चाहती है. नहीं रे बाबा..ऐसा कुछ नहीं होता. माता तो हमेशा माता होती है..वह नहीं सुना… कि ‘पूत कपूत हो सकता है, माता कभी कुमाता नहीं हो सकती’. तो बस इस मंत्र को गांठ बांध लो. माताओं-बहनों के पास तो साड़ी-दुपट्टा होगा तो वे अपने पल्लू में गांठ बांध लेंगी..पिता-भाई अगर शर्ट-पैंट के मोह में धोती-कुर्ता पहनना भूल चुके हैं तो कृपया लुंगी पहनना शुरू कर दें. इससे आपको गांठ बांधने की जगह मिल जाएगी. खैर आप समझदार हैं..अपना इंतजाम कर लेंगे…’महामाता’ पर चर्चा आगे बढ़ाते हैं.


हां, तो बात हो रही थी माता की कृपा पाने की. यह तो आप मानते हैं कि माता कुमाता नहीं हो सकती. आप ही देखिए इस ममतामयी माता का हम बच्चों के लिए इनकी ममता और स्नेह की पराकाष्ठा….कि 10 साल पहले जब माता हम बच्चों के कल्याण के लिए अवतरित हुईं सबने इन्हें माता मानने से ही इनकार कर दिया. बस इनके मंदिर के पुजारी भक्त ही इनकी महिमा समझ सके और उन्हें माता की ममता और स्नेह मिला भी. पर देश के अन्य भक्तों द्वारा माता मानने से इनकार किए जाने से आहत माता अंतर्ध्यान हो गईं. वे आहत थीं कि जिन भक्तों ने बार-बार पूजा-अर्चना कर, उनकी जय जयकार कर उन्हें प्रकट होने के लिए इतना बाध्य किया कि वे अपनी सुखमय बहूरानी का स्वर्ग की गद्दी छोड़कर धरती की कंकरीट वाले महल में आ गईं. अब वे भक्त ही उन्हें माता नहीं मान रहे. स्वर्ग की मात्र एक अप्सरा मानकर उनका अपमान कर रहे हैं. तो माता ने अंतर्ध्यान होकर भक्तों को सबक सिखाने का फैसला किया. फैसला किया कि वे अपने मंदिर के भक्तों को प्रसाद देकर उन्हें अनुगृहित करेंगी और देश के बाकी बच्चों को सबक सिखाएंगी कि वे सचमुच माता ही थीं.

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माता रानी की जय! मैय्या ने वह कर दिखाया. अपने सबसे बड़े भक्त को धब्बेदार पगड़ी का सबसे बड़ा तोहफा दिया. लेकिन ये बेवकूफ बच्चे यह चमत्कार देखकर बस चौंकते रहे… फिर भी नहीं समझे कि यह माता का चमत्कार है!..तो आखिरकर उनके मंदिर के एक और बड़े भक्त से आखिरकार अपनी माता का यह दुख देखा नहीं गया..और उन्होंने बता दिया कि जिसे आप स्वर्ग की अप्सरा समझ रहे हो वही सचमुच की माता हैं. जिसे आप सिर्फ राजकुमार की माता समझ रहे हो..हे मूर्ख भक्तों (बच्चों) वह वास्तव में आप सबकी माता हैं और आपको आशीर्वादित करने आई हैं. अब इस मैय्या की ममता देखो कि यह तो 10 वर्षों से उपेक्षित होकर भी फिर भी अपने देश के बच्चों को अपना आशीर्वाद देने को तैयार हैं. इसलिए तो मैय्या 2014 के चुनाव जगराता में फिर एक बार साक्षात् दर्शन देने वाली हैं. ताकि अब तक जो कृपा उन्होंने अपने मंदिर के भक्तों की आड़ में, अपने सबसे बड़े भक्त सरदार जी के करकमलों से आप पर बरसाई हैं, वह कृपा और अपना स्नेह वह साक्षात रूप में स्वयं अपने हाथों से बांट सकें. खा-खा कर मरने की स्थिति से बचाने के लिए वह चमत्कारी रूप से आपका धन गायब करते हुए भुखमरी के हालात लाकर आपको खा-खा कर मरने की पीड़ा से बचाना चाहती हैं. माता तो अपनी उपेक्षा के बावजूद सौतेली मां होने और कुमाता न होने का प्रमाण दे रही हैं…अब यह और बात है कि आप पूत अगर कपूत हो जाएं और वोट न देकर माता को मंदिर से निकलकर राजमाता न बनने दें तो माता का क्या दोष!

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