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मौका परस्त होना राजनीति की खास विशेषता है. यह एक ऐसा गुण है जो एक राजनेता को असल में राजनेता बनाता है. झूठे वायदे करना और उनके पीछे अपना वक़्त ना बर्बाद करना भी एक सूत्र के रूप में राजनीति में प्रयोग किया जाता है. आने वाले चुनाव के लिए अभी से ही तैयारी शुरू हो गई है. लोगों को आदेश मिलने शुरू हो गए हैं. इन आदेशों को देखें तो मौजूदा सत्ता पक्ष इन तैयारियों में सबसे आगे दिख रहा है जिसने एक लम्बी-चौड़ी लिस्ट बना रखी है. सोनिया गांधी ने एक दो दिवसीय बैठक में अपने सारे कार्यकर्ताओं और मंत्रियों को यह हिदायत दी है कि वायदों को पूरा करना जरूरी है.
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चिंता भी गम्भीर है: सच बात तो यह है कि कांग्रेस अब चिंतित हो उठी है और इतने दिनों से कर रहे बहानेबाजी का परिणाम वो जानती है कि क्या होने वाला है. अगर वो कुछ भी काम न करे तो उसका आने वाले चुनाव में बेड़ा गर्क होना निश्चित है. पर सोचने वाली बात यह है कि आखिर इतने दिनों बाद उसकी आंखें कैसे खुल गईं और वह भी उस समय जब वो पूरी तरह आरोपों से घिर चुकी है. शायद यह आरोप कांग्रेस के लिए इतने महत्वपूर्ण न हों पर महामहिम सोनिया जी यह अच्छे तरीके से जानती हैं कि अगर अब भी ना सुधार किया जाए तो उनका सफाया पूरी तरह निश्चित है.
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अब क्या करे? यह प्रश्न भी बहुत महत्वपूर्ण है कि अब कांग्रेस की रणनीति क्या होगी? आने वाले चुनाव में वो क्या नये प्रलोभन लेकर आयेगी जनता के सामने और क्या वो मात्र प्रलोभन ही होंगे या इस बार उन पर कुछ कार्यवाही भी की जाएगी. अगर बात करें बीते दिनों की तो कहीं भी ज्यादा विकास देखने को नहीं मिला भले ही घोटाले जरूर अपना कमाल दिखा गए. कांग्रेस की पूरी फिल्म घोटाले पर ही आधारित थी बीच-बीच में भले ही अरविन्द केजरीवाल और अन्ना हज़ारे जैसे विलेनों ने आकर फिल्म की दिशा बदलने की कोशिश की पर इसका फिल्म के मुख्य सीन पर कोई खास फर्क नहीं आया. शायद अब इनको अपने नारे में एक बदलाव लाना चाहिए और अपने सारे पुराने नारों को बदल कर “हम नहीं बदलेंगे” रख लेना चाहिए. अब बस इंतजार इस बात का है कि आगे की फिल्म कैसी होगी, विलेन और हीरो में किसकी जीत होगी और इसका जवाब तो शायद वक़्त ही दे सकता है.
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