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वर्तमान वैश्विक परिदृश्य लगभग द्न्द्व की स्थित से गुजर रहा है। मध्य एशिया के लगभग देश आज आतंकवाद से निजात पाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। वहीं, पूरा यूरोप ब्रेजिक्ट जैसे मुद्दों से जूझ रहा है। अमेरिका अपनी राजनीतिक तथा आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ आतंकवाद तथा चाइना से सैन्य विवादों में उलझा हुआ है। कुछ ऐसी ही स्थित पूर्वी दक्षिणी एशिया मे दक्षिण चीन सागर तथा दक्षिणी एशिया भूटान आदि में भी बनी हुए है।
तमाम विद्वानों का मानना है कि द्न्द्व या टकराव किसी भी सभ्यता के विकास के लिए आवश्यक है। द्न्द्व का ही परिणाम है कि आदिमनव ने दो पत्थरों के बीच टकराहट को उत्पन्न करके आग का आविष्कार किया, जिससे आदिमानव आदिम सभ्यता को छोड़कर सभ्य मानव के विकास की ओर अग्रसर हुआ था। यदि उपरोक्त मान्यता को मान लिया जाए, तो वर्तमान वैश्विक द्न्द्व भी विकास की राह है। परंतु यह किसी देश के लिए फलदायी होगा, जबकि किसी के लिए हानिकारक होगा । जबकि चीन की कुछ पूर्ववर्ती नीतियों का मूल्यांकन किया जाए, तो चीन द्वारा इस द्न्द्व का आपने पक्ष में भुनाने का पूरा मंसूबा स्पष्ट हो जाएगा।
चाइना ने कुछ समय पहले हिन्द महासागर में अपनी प्रमुख योजना ‘मोतियों की माला {स्ट्रिंग ऑफ पर्ल}’ की शुरुआत की थी। चीन की यह नीति भू -राजनीतिक {Geopolitical} सिद्धान्त के तहत हिन्द महासागर में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण किनारों तक अपनी सैन्य तथा वाणिज्यिक पहुँच के साथ संचार के माध्यमों को विकसित करने की है। इसी के परवर्ती कदम के रूप में चीन के ओबीओआर {OBOR} को भी देखा जा सकता है, जिसके तहत चाइना यूरोप तथा मध्य एशिया में खुद की स्थिति को मजबूत ढंग से स्थापित करना चाहता है। ऐसे तमाम कार्यक्रमों का उददेश चाइना ने आर्थिक तथा संचार को व्यापकता प्रदान करना बताया है। परंतु इनके व्यावहारिक उद्देश्य सैद्धांतिक उद्देश्यों से काफी दूर हैं।
अपनी बातों को फिर मैं वैश्विक परिदृश्य के वर्तमान द्न्द्व की तरफ लता हूं। आज जब ‘अमेरिका’ सरीखे नेतृत्व कर्ता देश खुद की आंतरिक समस्याओं से कमजोर हो रहे हैं तो यूरोपियन, यूनियन जैसे संगठन भी विश्व के नेतृत्वकर्ता की स्थित में नहीं हैं। रूस आदि जैसे विकसित देश आतंकवाद की समस्याओं से प्रताड़ित हैं। ऐसी स्थित में सबसे बड़ा प्रश्न है कि आने वाले समय में कौन सा देश वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनेगा। इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं। जैसे विश्व में सबसे तीव्र विकास दर वाला देश भारत, विकासशील देशों की सूची में आगे चल रहा ब्राज़ील या फिर विश्व को आँख दिखा रहा चाइना। जाहिर है कि उपरोक्त देशों में से कोई भी देश इस सुअवसर को गवांना नहीं चाहता है। भारत अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग कर रहा है तथा जब विश्व आज आर्थिक, राजनीतिक संकटों का सामना कर रहा है, तो उस स्थित में भी भारत अपनी बढ़त बनाए हुए है।
ऐसी स्थित में चाइना का भारत के साथ छलकपट जैसे मनोवैज्ञानिक युद्ध लाज़मी है। चाइना आज जिस मुकाम पर पहुँच चुका है, किसी से भी छिपा नहीं है। वर्तमान दौर में उसका विकास चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुका है। परंतु यह भी सच है कि यदि वह वर्तमान स्थित का सदुपयोग अपने पक्ष में नहीं कर पाया, तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की आने वाले समय में चीन भारत के पीछे लगा होगा लाइन में।
इस दूरदर्शिता को समझते हुए चाइना साम, दाम, दंड, भेद सभी नीतियों का उपयोग करके भारत को अपना पिछलग्गू बनाना चाहता है। यह भारत का सौभाग्य है कि वर्तमान सरकार जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जैसे दूरदर्शी एवं योग्य नेतृत्वकर्ता मिले हैं, जिससे चाइना की सभी रणनीतिया विफल होती नजर आ रही हैं।
यह भी स्पष्ट है कि भविष्य में चाइना विश्व का नेतृत्व कर सकता है। ऐसे में वह युद्ध जैसी विध्वंसक नीतियों का उपयोग नहीं करेगा। ऐसे में वह बस छलकपट तथा युद्धोन्माद जैसी दुष्प्रचारक रणनीतियों का ही सहारा ले सकता है और लगभग चीनी विदेश नीति तथा उसके सरकारी मीडिया द्वारा यही दुष्प्रचार फैलाया जा रहा है, जिससे भारत उसकी इन धमकियों से डर जाए। परंतु भारत ने OBOR में शामिल होने के चीन के प्रस्ताव को ठुकराकर तथा डोकलाम में भूटान का सैन्य सहयोगी बनकर अपनी स्थित स्पष्ट कर चुका है।
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