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गाँधी बाबा ! गाँधी बाबा !
गाँधी बाबा ! गाँधी बाबा !
क्या आप मुझे सुन सकते हैं ?
क्या मुझसे बात कर सकते हैं ?
मैं तडप रहा हूँ आपसे बात करने के लिए
आप से सवाल करने के लिए
आप से जवाब पाने के लिए
मुझे दुःख है कि हमारी पीढ़ी
आप को भला बुरा कहती है
जो नही जानती गाँधी होने की परिभाषा
जो नही जानती खून की कीमत
उन्हें नहीं पता विलायती कोट -पैंट
जब खादी पहनते हैं तो
प्रसव -पीड़ा से गुजरना होता है
महात्मा के लिबास के दाग
समाज को दिखा देना छोटी बात समझते हैं ये
खुद से सवाल करने की हिम्मत नही
आप पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं
कैसी विडम्बना है ?
अंधी आलोचना है
ये ठीक है कि आप के बंदरों ने
खूब उत्पात मचाया है
खूब नचाया है
आप को भी , हमें भी
पर गाँधी होना और आंधी होना
फर्क तो है दोनों में
फूल और धूल जैसा
एक जुड़ा हुआ अपनी धरती से
एक बोझ बना है धरती पर
एक सुगंध का साथी
एक आँख की किरकिरी
अंधी आलोचना है –
फूल को धूल कहना
मेरा केवल एक सवाल –
गाँधी होना दुखता तो होगा ?
– प्रभु दयाल हंस
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