Menu
blogid : 12424 postid : 39

तरुणाई का दीप जले

शब्दों की दुनिया
शब्दों की दुनिया
  • 32 Posts
  • 30 Comments

धरा के कोने कोने में तम
फहराता रहता है परचम
गगन सुप्त है सुप्त दिशाएँ
सुप्त हमारी सब इच्छाएँ
जीवन के सब शब्द हैं रीते
ये रजनी जाने कब बीते
जुगनू लेकर के इकतारा
फिरता जंगल मारा मारा
एक अकेला कहाँ चले
तरुणाई का दीप जले।

बोलों पर पहरे बैठे हैं
चेहरों पर चेहरे बैठे हैं
बंधन- बंधन जीवन- जीवन
लेकर अपना अपना क्रन्दन
स्वप्न खो रहे सब नयनों के
गंतव्य छूटे चरणों के
एकत्रित कर शक्ति अपनी
बंद करो अब माला जपनी
कौन जवानी कब मचले
तरुणाई का दीप जले।
तरुणाई का दीप जले।
– प्रभु दयाल ‘हंस’

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply