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दो पल साथ चलो

शब्दों की दुनिया
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दो पल साथ चलो

अंत हीन मरुस्थल में
भानु की उष्णता से
जीवन झुलस झुलस जाता है
जाने कदमों का वह यौवन
कौन लूट कर ले जाता है
थका हुआ होता अंतर्मन
जीवन भी न लगता जीवन
दो पल साथ चलो तुम मेरे
शीतलता की वर्षा कर दो

भय मुझे कि कठिन डगर है
भयंकर है जंगल सारा
तरह तरह के पशु विचरते
मैं फिरता हूँ मारा मारा
जाने कैसे पार करूँगा
जीवन की इस अजब डगर को
बिना तुम्हारे मेरे साथी
दो पल साथ चलो तुम मेरे
प्रेरणा के मुझको स्वर दो
– प्रभु दयाल हंस

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