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भूतों की अधूरी बात ……

शब्दों की दुनिया
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आत्मा ,परमात्मा ,भूत ,प्रेत … कुछ ऐसे विषय हैं, जिन पर संसार के सर्वाधिक लोग सोचते हैं पर निष्कर्ष पर नही पहुंच पाते. सृष्टि की शुरुआत से ही मनुष्य इन विषयों पर सोचता रहा है परन्तु अभी तक इन पर कोई सर्वमान्य निष्कर्ष नही निकाल पाया है. आत्मा क्या है ? कहाँ से आती है ? कहाँ जाती है ?आत्मा अजर अमर है या शरीर के साथ ही खत्म हो जाती है ? शरीर में ये होती भी है या नही ? कितने ही सारे प्रश्न आशा लिए संसार के श्रेष्ठ विद्वानों की ओर निहार रहे हैं .यदि आत्मा का प्रश्न हल हो जाता है तो परमात्मा पर आकर बुद्धि विराम लेने लगती है. परमात्मा में मौजूद परम और आत्मा का मिलन यह सिद्ध करता है कि यदि आत्माएं होती है तो उनमें से जो श्रेष्ठ है , शक्तिशाली है, महान है , वही परमात्मा है.आत्मा का अस्तित्व जब तक हल नही हो जाता , परमात्मा की तो बात ही करना मुझे आधारहीन लगता है.
अच्छा एक चीज और है कि आत्मा को अजर अमर मानते हैं. उसे जन्म मरण से परे मानते हैं .परन्तु यह विचार परेशान करता है कि सृष्टि की शुरुआत में कितनी आत्माएं पैदा की गई होंगी . क्या लाखों वर्ष पहले ही करोड़ों , अरबों आत्माएं बना दी गई होंगी या जरूरत के अनुसार बनाता रहा होगा. दोनों ही स्थितियों में यह तो स्पष्ट है कि आत्माएं जन्म लेती हैं , उनका निर्माण तो होता है .ये हो सकता है कि वे सामान्य मनुष्य की तरह जन्म न लेती हों . उनकी जन्म प्रक्रिया विशेष प्रकार की रहती हो या यह भी हो सकता है कि उनका कोई कारखाना चलता हो ,जहाँ बिना एक्सपायरी डेट डाले ही उन्हें संसार मैं उतार दिया जाता हो . खैर, उनके बारे में जो भी अधकचरा जानकारी है , वह उनके अस्तित्व को और भी उलझा देती है .मानव की यह प्रवृति रही है कि जिन चीजों को वह ढंग से जानता नही या जो कुछ उसे रहस्यपूर्ण लगता है,वही उसके लिए पूज्य हो जाता है , उसमें डर पैदा कर देता है . चाँद ,सूरज ,पहाड़ ,नदियाँ ,आग , आत्मा ,परमात्मा , भूत , प्रेत आदि कितनी ही ऐसी चीजें हैं, जो मानव के लिए पूज्य रहीं और डर भी पैदा करती रहीं. ‘भय बिन होय न प्रीत गुसांई’ वाला सिद्धांत डर और पूजा के सम्बन्ध का ही परिचायक है.
आत्मा -परमात्मा की तरह ही भूत प्रेत भी मनुष्य के लिए सिरदर्द रहे हैं. जैसे आत्मा परमात्मा पर विभिन्न विचार देखने सुनने को मिल जाते हैं , वैसे ही भूत प्रेतों पर भी विभिन्न विचार सामने आते हैं. सदियों से समाज में भूतों को लेकर भय व्याप्त है.
क्या पढ़े लिखे , क्या अनपढ़ ! कोई भी इस विषय पर कुछ भी स्पष्ट कहने की स्थिति में नही है . गांवों में , शहरों में, जहाँ भी हनुमान के मन्दिर हैं ,वहीं दो- तीन मरीज इस मर्ज के भी मिल जाते हैं. बाल बिखेरे ,अस्त- व्यस्त कपड़े ,अजीब सी भिंची भिंची आवाज निकालते नर- नारियों को देख कर मन्दिर में बैठे लोग सिहर जाते हैं .पुजारी टाईप लोग विभिन्न तरीकों से उनका इलाज करते दीखते हैं. इन को देख कर लगता नही कि ये अभिनय कर रहे हैं. यदि ये अभिनय भी कर रहे हैं तो इनका अभिनय गजब का है. घरों में घूंघट भी नही हटाने वाली औरतों का भीड़ में बेझिझक ,साहसिक अभिनय ….. दाद देनी पड़ेगी इस अभिनय की…….. यदि ये अभिनय ही है तो…………
इन सब चीजों पर विचार करने के पश्चात लगता है कि जहाँ आग होगी , धुआं भी वहीं होगा . मेरे अपने आस – पास एक- दो इस तरह की घटनाएँ घटी हैं, जिन से भूत- प्रेतों की उपस्थिति का सामान्य बोध होता है. इन घटनाओं में मैं तटस्थ हूँ , दर्शक मात्र हूँ . इसलिए स्पष्ट तो नही कहा जा सकता परन्तु ऐसा लगता है कि कोई न कोई गडबड तो अवश्य ही है .
मेरा चचेरा भाई जिसका नाम लक्ष्मीकान्त है, जब छोटा था तो अक्सर डर जाता था . कई बार तो बहुत बुरी तरह डरा. जब भी डरता तो एक ही व्यक्ति को लेकर डरता था . वह व्यक्ति उसे अपनी और आता दिखाई देता था, मारने का प्रयास करता था.ये घटनाएँ हर बार अँधेरे में ही होती थीं शाम या रात को . हमारा घर एक पतली सी गली में था जहाँ हम और चाचाजी रहते थे. वह गली सांप की तरह बल खाती हुई सी थी . उस गली की शुरूआत में ही एक चौपाल थी और चौपाल से घर की और आने में एक खंडहर मकान पड़ता था. उस मकान के पास गली में मोड़ था और प्रकाश की व्यवस्था भी नही थी . यह प्रचलित था कि उस मकान में भूत रहते हैं.सालों पहले एक 14-15 साल का लड़का जिसका एक पैर खराब था ,उस मकान में मर गया था. ये बात बहुत पहले की है परन्तु मरने के बाद वह लड़का ‘लंगड़े भूत’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया. लक्ष्मीकान्त जब भी घर से शाम को कुछ दूध ,दही खा कर निकलता तो उसी मकान के पास उसे कोई आवाज देता और पिटाई करता. लक्ष्मी कई बार रोता हुआ घर पहुंचा तो घर वालों की चिंता स्वाभाविक ही थी. उसे कई सयानों (?) को दिखाया गया जिसमें मेरे ताऊजी भी शामिल थे . सब का एक ही कहना था कि इस लडके पर ‘लंगड़े’ का प्रकोप है. गंडा, ताबीज कराया गया और लंगड़े को भगाने का पक्का इंतजाम किया गया.
कुछ दिन तक तो ठीक चला परन्तु फिर वही कहानी शुरू ….अचानक शाम को चिल्लाता हुआ लक्ष्मी कान्त….. एकदम भीड़ जमा ………… कई तरह के प्रश्न …….. आंसू रुकने का नाम नही लेते …….. सिसकियाँ निरंतर जारी………… निष्कर्ष में फिर वही लंगड़ा……….
अब की बार एक नई बात सामने आई कि लक्ष्मी कान्त ने लंगड़े के परिवार के सदस्यों के साथ कोई चीज खा ली थी. यह लंगड़े को बिलकुल पसंद नही था. उस परिवार का धर्मवीर हम लोगों का सहपाठी था. इस नाते हम सब उस के घर आते जाते रहते थे और खाना पीना भी कभी कभी हो जाता था . लक्ष्मी कान्त जब भी धर्मवीर के घर कुछ खा पी लेता तो उसी समय उसके साथ कोई न कोई घटना जरूर घटती . लक्ष्मी के मन में पूरा डर बन गया था .हर चीज में सावधानी बरतने लगा. इतना डर गया था कि कोई भी आह्ट,आवाज ,हलचल उसे बुरी तरह डरा देती थी. ताबीज आदि खूब बनवाए गये पर कोई फायदा नही हुआ .काफी परेशान रहा लक्ष्मी कान्त उन दिनों. काफी दिन बाद किसी मुसलमान सयाने से उसका इलाज कराया गया और बात बन गई .फिर सालों तक लक्ष्मी कान्त को कोई दिक्कत नही आई.
सालों बाद फिर एक दिक्कत आई .पुराने घरों को हम छोड़ आए थे. हमारे नए घर भी पास पास ही थे. गर्मियों के दिन थे .रात को हम सब ऊपर छतों पर सोए हुए थे .लक्ष्मी कान्त भी अपनी छत पर सोया हुआ था. हमारी छतें मिली हुई हैं. रात को अचानक दो बिल्लियाँ लड़ने लगी और लड़ते लड़ते लक्ष्मी की खाट के नीचे घुस गईं . गहरी नींद सोया हुआ लक्ष्मी उनके शोर शराबे से इतना डरा कि जोर जोर से चिल्लाने लगा . मम्मी बचाओ ,मम्मी बचाओ… कह कर इधर उधर भागने लगा . हम सब जाग गए .वह चिल्लाए जा रहा था और सांसें तेज तेज चल रही थी .आँखों से आंसू बह रहे थे. मैं भाग कर उसके पास पहुंचा ,उसे पकड़ा ,सम्भाला . मुझे तुरंत ही बिल्लियों वाली बात समझ में आ गई . लेकिन लक्ष्मी को शायद पहली बातें ही एक दम से याद आ गई थीं . इसलिए बहुत जोर से डर गया था .सभी लोग वहां पहुंच चुके थे . वह धीरे- धीरे शांत हो गया .
अब की बार तो हमे पता चल गया था , नही तो इस बार भी हम समझते कि लंगड़े ने हमला कर दिया .इस लंगड़े के भूत से लक्ष्मी कान्त काफी समय परेशान रहा पर धीरे धीरे सब सामान्य हो गया .अब लक्ष्मी कान्त अपनी गाड़ी चलाता है . रात- विरात आना जाना लगा रहता है .परन्तु अब कोई ऐसी समस्या नही है. सब शांति से चल रहा है. समझ नही पाता हूँ कि आखिर ये सब क्या था . क्या सच में ही भूत होते हैं या कोई बीमारी होती है ? हमारे अंदर का ही डर है या कुछ और है ? लंगड़े भूत का उपद्रव या बिल्लियों का लड़ना ? आखिर क्या है ये सब ?

– प्रभु दयाल हंस

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